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अमरकोषः।
[ तृतीयकाण्डे१ 'आत्मवाननपेतोऽर्थादथ्यौँ २ पुण्यं तु चार्वपि ॥ १६० ।। ३ रूप्यं प्रशस्तरूपेऽपि ४ वदाम्यो वल्गुवागपि । ५ न्याय्येऽपि मध्यं ६ सौम्यं तु सुन्दरे सोमदैवते ॥ १६१ ॥ ७ "सर्वज्ञभिषजौ वैद्या ८ वात्मा कामश्च हृच्छयौ (६७) ९ फलकल्याणयोर्भव्यं १० योग्यं सांप्रतिके त्रिषु ( ६८) ११ कियाचारातिक्रमेऽपि १२ जलाधारेऽपि चाशयः (६९)
१ 'अथ्यः' (त्रि ) के बुद्धिमान् ( +धार्मिक }, अर्थसे युक्त, न्याय से युक्त, ३ अर्थ हैं।
. 'पुण्यम्' (त्रि) के मनोहर, पवित्र, १ अर्थ और 'पुण्यम्' (न) के सुकृत, धर्म, २ अर्थ हैं।
३ 'रूष्यम्' (वि) कासुन्दर रूपवाला, १ भर्थ और 'रूष्यम्'(न) के सोनेका सिक्का (अशर्फी, गिन्नी आदि), चांदीका सिक्का (रुपया, अठन्नी आदि), १ अर्थ हैं ।
४ 'वदान्यः' ( + वदन्यः । त्रि) के मधुर बोलनेवाला, बहुत दान देने. वाला, २ अर्थ हैं।
५ 'मध्यम्' (त्रि) के न्याय्य (न्यायसे युक्त), कमर, बीच, अधम, ४ अर्थ हैं ।
६ 'सौम्यम्' (त्रि) के सुन्दर, उग्रताहीन, सोम देवतावाला हविष्य आदि, ३ अर्थ और 'सौम्यः' (पु) का बुघ नामका प्रह, १ अर्थ है ॥
['वैद्यः' (पु) के सर्वज्ञ ( सब कुछ जाननेवाला अर्थत् पण्डित ), भिषक ( दवा करनेवाला वैद्य, डाक्टर, हकीम आदि), २ अर्थ हैं ] ।
८ [ 'हृच्छयः' (पु) के आरमा, कामदेव, २ अर्थ हैं ] !! ९ ['भण्यम्' (न) के फल, कल्याण, २ अर्थ हैं ]॥
१. [ 'योग्यम्' (त्रि) के योगाह, चित, निपुण, समर्थ, ४ अध 'योग्य' (पु) के पुष्प नक्षत्र, और 'योग्यम्' (न) का ऋद्धि औषध, । अर्थ है।
"क्रिया' (स्त्री) के भाचारातिक्रम, भारम्भ, आदि (३३।१५९ में उक)१० अर्थ हैं ।
१२ [ 'आशयः' (पुं) के जलाधार, अभिप्राय, कटहल ३ अर्थ हैं ] ॥ १. 'अन्नवाननपेतोऽर्थादथ्यौं' इति पाठान्तरम् ॥
२. 'सर्वशमिषजी.........."सरित्' इति क्षेपकांशः महेश्वरव्याख्यायां, दुर्गवचनत्वेन क्षी. स्वा० व्याख्यायानोपलभ्यत इति प्रकृतोस्योगितया क्षेपकरखेन मूले निहितः ॥
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