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नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
१ वृषाकपायी श्रीगौर्यो २ रभिख्या नामशोभयोः ॥ १५६ ।। ३ आरम्भो निष्कृतिः शिक्षा पूजनं संप्रधारणम् ।
उपायः कर्म चेष्टा च चिकित्सा च नव किया ।। १५७ ।।
छाया सूर्यप्रिया कान्तिः प्रतिबिम्बमनातपः । ५ कक्ष्या प्रकोष्ठे हादेः काञ्च्यां मध्येभवन्धने ।। १५८ ।। ६ कृत्या क्रियादेबतयोस्त्रिपु मेधे धनादिभिः । ७ जन्यं स्याजनवादेऽपि ८ 'जघन्योऽन्त्येऽधमेऽपि च ।। १५९ ।। ९ 'गांधीनी च वक्तन्यौ १० कल्यौ सजनिरामयो।
१ वृषाकपायी' (स्त्री) के लक्ष्मीजी, पार्वतीजी, जीवन्ती नामका ओषधि-विशेष, शतावर, ४ अर्थ हैं ।
२ 'अभिख्या' (स्त्री) के नाम, शोभा, यश, ३ अर्थ हैं।
३ 'क्रिया' (स्त्री) के कार्य, निष्कृति (प्रायश्चित्त ), शिक्षा, पूजा, विचार, साम आदि ( दान, दण्ड, विभेद ) चार उपाय, काम, चेष्टा, रोग मादि. की चिकित्सा, ९ अर्थ हैं ।
४ 'छाया' (स्त्री) के सूर्यको स्त्री, शोभा, प्रतिबिम्ब, छोह, ४ अर्थ हैं ॥
५ 'कक्ष्या' (स्त्री) के राजगृह आदि की ड्योढ़ी, करधनी (स्त्रियों के कमरका भूषण ), हाथियोंका हौदा, गद्दा आदि कसनेकी डोरी, ३ अर्थ हैं ।
६ 'कृत्या' (स्त्री) के क्रिया, देवता विशेष ( 'मारी' नामक), २ अर्थ और 'कृत्या' (त्रि) के धन स्त्री भूमि भादिसे शत्रुका भेद्य ( फोड़ने योग्य ) पुरुष आदि, कार्य, २ अर्थ हैं ।
● 'जन्यः (पु। + न) के जनापवाद, उस्पात, युद्ध, ३ अर्थ हैं।
८ 'जघन्यः' (त्रि) के अन्त ( + अन्त्य ), नीच, निन्दित, शिश्न (लिङ्ग), ४ अर्थ हैं ।।
९ 'वक्तव्यः ' (त्रि) के निन्दित, हीन (+ वश), कहने योग्य, ३ अर्थ हैं ।
१. 'कल्यः ' (नि) के उपाय-युक्त ( तयार, सजा हुआ ), नीरोग, २ अर्थ हैं॥
१. 'जघन्योऽन्ते' इति पाठान्तरम् ॥
२. 'गृह्याधीनौ' इति पाठान्तरम् ।।
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