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अमरकोषः ।
[ तृतीय काण्डे
१ निर्यासेऽपि कषायोऽस्त्री २ सभायां च प्रतिश्रयः ।। १५२ ॥ ३ प्रायो भूम्यन्तगमने ४ मन्युर्दैन्ये ऋतौ कुधि ।
५ रहस्योपस्थयोर्गुह्यं ६ सत्यं शपथतथ्ययोः ॥ १५४ ॥ ७ वीर्य बले प्रभावे च ८ द्रव्यं भव्ये गुणाश्रये ।
९ धिष्ण्यं स्थाने गृहे मेऽग्नौ १० भाग्यं कर्म शुभाशुभम् ॥ १५५ ॥ ११ कशेरुहेग्नोर्गाङ्गियं १२ विशल्या दन्तिकाऽपि च ।
५
१ 'कषायः' (पुनः) के काढ़ा, कषाय (कसाव ) रस, गेरुआ रंग, ३ अर्थ हैं ॥ २ ' प्रतिश्रयः' (पु) के सभा, आश्रय, २ अर्थ हैं ॥
३ 'प्राय.' (पु) के अधिकतर, अन्तिव यात्रा ( मरना, जैसे 'प्रायोपवेशः कृतः' अर्थात् मर गया, ' · ), अनशन ( भोजन - श्याग करना), तुक्ष्य ४ अर्थ हैं ॥ ४ 'मन्युः' (पु) के दीनता, यज्ञ, क्रोध, ३ अर्थ हैं ॥
५ 'गुह्यम्' (न) के रहस्य, उपस्थ ( योनि, लिङ्ग ), २ अर्थ हैं ॥
६ 'सत्यम्' ( न ) के कसम ( शपथ ), सत्य, २ अर्थ हैं ॥
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'वीर्यम्' (न) के बल, प्रभाव, तेज, शुक्र ( पुरुषका धातु), ४ अर्थ हैं ॥ ८ 'द्रव्यम्' (न) के भव्य ( योग्य ), गुणाश्रय ( गन्ध आदि गुणका आश्रम - पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन, ये ९ द्रव्य' ), धन, विलेप, ओषधि, ५ अर्थ हैं ॥
५
e 'fùcoag' ( a ) è eura, qz, aga, mía, afm, ( श्री० स्वा० के मत में अग्नि अर्थ में 'धिष्ण्यः' ( पु ) है ) ॥
अर्थ |
१० 'भाग्यम्' (न) के पूर्व जन्मका किया हुआ शुभ या अशुभ कर्म, ऐश्वर्य, २ अर्थ हैं ॥
११ 'गाङ्गेयम्' (न) के दो, सुवर्ण, २ अर्थ और 'गाङ्गेयः' (पु) का भीष्म पितामह, १ अर्थ है |
१२ 'विशल्या' ( वी ) के दन्ती ( ओषधि - विशेष ), आग की लपट, गुडुच, त्रिपुटा ओषधि, ४ अर्थ हैं ॥
१. 'कसेरु नोर्गाङ्गेयं' इति पाठान्तरम् ॥
२. तदुक्तमन्नम्भट्टेन तर्कसङ्ग्रह - 'तन्न द्रव्याणि पृथिव्यप्तेजोवाय्याकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव' इति ॥
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