________________
नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
४७५ -१ अथानुशयो दीर्घद्वेषानुतापयोः ॥ १४८ ॥ २ स्थूलोधस्त्वसाकल्ये वागानां मध्यमे गते । ३ समयाः शपथाचारकालसिद्धान्तसंविदः ॥१४९ ॥ . व्यसनान्य शुभं दैवं विपदित्यनयास्त्रयः । ५ अत्ययोऽतिक्रमे छच्छे दोषे दण्डेऽप्यथापदि ॥१५॥
युद्धायत्योः संपरायः ७ पूज्यस्तु श्वशुरेऽपि च । ८ पश्चादवस्थायि बलं समवायश्च सन्नयौ ॥१५१॥ ९ संघाते सनिवेशे च संस्त्यायः. १० प्रणयास्त्वमी।
'विश्वम्भयाच्याप्रेमाणो ११ विरोधेऽपि समुच्छयः ॥ १५२॥ १२ विषयो यस्य यो ज्ञातस्तत्र शब्दादिकेम्वपि । १ 'अनुशयः' (पु) के बड़ा द्वेष, पछतावा. २ अर्थ हैं।
२ स्थूलोञ्चयः' (पु) के असंपूर्णता, हाथियोंका मध्यम ( न बहुत कम न बहुत अधिक ) गतिसे चलना, पहाड़का बड़ा ढोका (चट्टान ), ३ अर्थ हैं।
३ 'समयः' (पु) के शपथ, आचार, काल, सिद्धान्त, भाषा, बुद्धि, निर्देश, संकेत, ८ अर्थ हैं।
४ 'अनयः' (पु) के जुआ आदि खेलनेकी बुरी आदत, दुर्भाग्य, विपत्ति, भन्याय, ४ अर्थ हैं ।
५'अत्ययः' (पु) के उल्लङ्घन, कष्ट, दोष, दण्ड, बड़ा उत्पात, ५ अर्थ हैं।
'संपरायः' (पु) के युद्ध, आपत्ति, उत्तर काल, ३ अर्थ हैं॥ ७ 'पृज्यः ' (पु) के श्वशुर, पूजा करने योग्य, . अर्थ हैं ॥ ८ 'सन्नयः' (पु ) के सेनाके पीछे रहने वाली सेना, समूह, २ अर्थ हैं । ९ 'संस्त्यायः' (पु) के समूह, स्थान-विशेष, विस्तार ३ अर्थ हैं ॥ १० 'प्रणयः' (पु) के विश्वास, याचना, प्रेम, परिचय, ४ अर्थ हैं। ११ 'समुछ्यः ' (पु) के बिरोध, ऊँचाई, २ अर्थ है ॥
१२ 'विषयः' (पु) के देश, स्थान, शब्द आदि ( स्पर्श, रूप, रस, गन्ध । इनमें कानका शब्द, स्वचाका स्पर्श, नेत्रका रूप, जिह्वाका रस और नाक का गन्ध विषय है), ३ अर्थ हैं ।
१. 'विसम्मयाच्याप्रेमाणः' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org