________________
४७४
अमरकोषः ।
[ तृतीय काण्डे
- १ भीमा रुद्रभीषणपाण्डवा:' (६६) इति मान्ताः शब्दाः ।
अथ यान्ताः शब्दाः ।
२ तुरङ्गगरुड तार्यो ३ निलयापचय क्षय । ४ श्वशुर्यो देवरश्याला ५ खातृव्यौ भ्रातृजद्विषौ ॥ १४६ ॥ ६ पर्जन्यौ रसदग्देन्द्रौ ७ स्यादर्यः स्वामिवैश्ययोः । ८ तिष्यः पुष्ये कलियुगे ९ पर्यायोऽवसरे क्रमे ॥ १४७ ॥ १० प्रत्ययोऽधीनशपथज्ञानविश्वास हेतुषु ।
रन्ध्र शब्दे
१ [ 'भीमः' (पु) के शिवजी, भयङ्कर, भीमसेन ( युधिष्ठिरका भाई " अमलवेंत ४ अर्थ है ] ॥
इति मान्ताः शब्दाः |
३ अर्थ हैं ।
-D
NN NIFAI: NEQI: I
२ 'तार्क्ष्यः' (पु) के घोड़ा, गरुड़, सर्प, गरुड़का बड़ा भाई, ४ अर्थ हैं ॥ ३ 'क्षयः' (पु) के घर, कमी ( नाश ), कल्पान्त, रोग विशेष, ४ अर्थ हैं ।
·
8
'श्वशुर्यः' (पु) के देवर ( पतिका छोटा भाई ), शाला ( स्त्रीका भाई ), २ अर्थ हैं |
५ ' भ्रातृव्यः' ( पु ) के भाई का लड़का, शत्रु, २ अर्थ हैं ॥
६ 'पर्जन्य : '
पु) के गर्जता हुआ मेघ, इन्द्र, मेघका गर्जना,
७ 'अर्यः' (पु) के स्वामी, वैश्य, २ अर्थ हैं ॥
निर्माण,
८ ' तिष्यः' ( 9 ) के पुष्य नामका आठवां नक्षत्र, कलियुग, १ अर्थ हैं ॥ ९ ' पर्यायः' (पु) के अवसर, सिलसिला (क्रम ), प्रकार, ४ अर्ध हैं ।
१० ' प्रत्ययः' (पु) के अधीन, शपथ ( कसम ), ज्ञान, विश्वास, कारण, आचार, प्रसिद्ध, छिद्र, प्रत्यय ( जैसे - सन् क्यच् काम्यच् तिप् तस् झि, सु, औटू, जस्,
,
.....
), २ अर्थ हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
"
www.jainelibrary.org