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अमरकोषः
[तृतीयकाण्डे१ वणिक्पथः पुरं वेदो निगमो २ नागरो वणिक् ।
नैगमौ द्वौ ३ बले रामो नीलचारूसिते त्रिषु ॥ १४० ॥ ४ शब्दादिपूर्वो वृन्देऽपि ग्रामः ५ क्रान्तौ च विक्रमः । ६ स्तोमः स्तोत्रेऽध्वरे वृन्दे ७जिह्मस्तु कुटिलेऽलसे ॥ ११ ॥ ८ 'उष्णेऽपि धर्म९श्चेष्टालङ्कारे भ्रान्तौ च विभ्रमः । १० गुल्मा रुस्तम्बसेनाश्च११जामिः स्वसृकुल स्त्रियोः ॥ १५२ ।। १२ क्षितिक्षान्त्योः क्षमा युक्ते क्षमं शक्ते हिते त्रिषु । , 'निगमः' (पु) के वाणिज्य, पुर ( ग्राम), वेद, २ अर्थ हैं ।
२'नगमः' (त्रि) के वेद-सम्बन्धी, नगर-वासी, २ अर्थ और 'नैगमः' (पु) के उपनिषद, बनियां, २ अर्थ हैं॥
३ 'रामः' (पु) के बलदेवजी (कृष्णजी के बड़े भाई ), परशुरामजी, रामचन्द्रजी, ३ अर्थ और 'रामः' (त्रि) के नीला, सुन्दर, सफेद, बागीचा, १ अर्थ हैं।
४ 'ग्रामः' (पु) के शब्द आदि (पूर्व) में रहे तो समूह (जैसेशब्दप्रामः, गुणग्राम अर्थात् क्रमशः शब्द-समूह, गुण-प्समूह,"), गांध, स्वरविशेष, ३ अर्थ हैं॥
५ 'विक्रमः' (पु) के क्रान्ति ( भाक्रमण ), पराक्रम, ३ अर्थ हैं । ६ 'स्तोमः' (पु) के स्तोत्र, यज्ञ, समूह, ३ अर्थ हैं । ७ 'जिह्मः' (पु) के कुटिल, आलसी, २ अर्थ हैं। ८ 'धर्मः' (पु) के धूप (घाम, रौदा) पसीना, २ अर्थ हैं।
९ "विभ्रमः' (पु) के हाव, भ्रान्ति, शोभा, पद्यका अलङ्कार विशेष, ४ अर्थ हैं।
१. 'गुल्मः' (पु) के गुरुम (प्लीहा या कब्ज) रोग, कुश, बाल, साल आदि का गुच्छा, सेना-विशेष (१८८१ का चक्र), किला आदिका रक्षास्थान, ४ अर्थ हैं।
" 'जामिः' (+यामिः । स्त्री) के बहन (भगिनी), कुलस्त्री, २ अर्थ हैं। ११ 'क्षमा' (स्त्री) के पृथ्वी, माफी, २ अर्थ; 'क्षमम्' (न) का योग्य, अर्थ और 'क्षमम्' (त्रि) के शक्त (समर्थ), हित, १ अर्थ हैं । १. 'दाविति ब्राह्मणस्य नैगमरखें निषेधः इति क्षी० स्वा० ॥ २. 'उष्णेऽपि....."विभ्रम" इति क्षेपकांशः मा० दी० मुंबव्याख्ययोनोंपकभ्यते ॥
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