________________
नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
-१ सुरभिर्गवि च स्त्रियाम् । २ सभा संसदि सभ्ये च ३ त्रिज्वध्यक्षेऽपि वल्लभः ।। १३७ ।।
इति भान्ताः शब्दाः ।
अथ मान्ताः शब्दाः। ४ किरणप्रग्रही रश्मी ५ कपिभेको नमो। ६ इच्छामनोभवो कामौ ७ शौर्योद्योगी पराक्रमौ ॥१३८ । ८ धर्माः पुण्ययमन्यायस्वभावाचारसोमपाः ।
६ उपायपूर्व आरम्भ उपधा चाप्युपक्रमः ।। १३९ ।। राजा, पहिये के बीचवाला भाग, ३ अर्थ और 'नाभि:' (स्त्री) करतूरीकामद, १ अर्थ है ॥
'सुरभिः' (स्त्री) का गौ, १ अर्थ; 'सुरभिः' (पु)के वसन्त ऋतु, जातीफल, चम्पा, अर्थ और 'सुरभिः' (त्रि) के सुगंधित, मनोहर, २ अर्थ हैं ।
२ 'सभा' (स्त्री) के सभा (बैठक, कमेटी ), धूतमन्दिर, ३ अर्थ हैं । ३ 'बल्लभः' (त्रि) के अध्यक्ष, प्रिय, हैं ।
इति भान्ताः शब्दाः ।
अथ भान्ताः शब्दाः । ४ 'रश्मिः ' (पु) के किरण, रस्सी २ अर्थ हैं । ५ प्लवनमः' (पु) के बन्दर, मेढक, २ अर्थ हैं । ६ 'कामः' (पु) के इच्छा, कामदेव, काम्य, ३ अर्थ हैं । ७ 'पराक्रमः' (पु) के सामर्थ्य उद्योग, २ अर्थ हैं ।
८ 'धर्मः' (पु न ) के पुण्य ( यज्ञ, अहिंसा आदि ), आचार (जैसेधर्मशास्त्र, आदि), स्वभाव, उपक्रम, उपनिषत् , न्याय (जैसे-धर्माधिकारी, धर्माध्यक्ष,..), ६ अर्थ औ 'धर्मः' (पु) के यमराज, सोमलताका पान करनेवाला, जिन, ३ अर्थ हैं।
९ 'उपक्रमः' (पु) के उपायको सोचकर किया हमा आरम्भ, मन्त्रीके शील. परीक्षा करनेका उपाय, चिकित्सा, ३ अर्थ हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org