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अमरकोषः ।
१ दव फणापि २ बिम्बोऽस्त्री मण्डले चाकृतौ फले' (६४) इति वा ( बा ) न्ताः शब्दाः ।
अथ भान्ताः शब्दाः ।
३ कुम्भो घटेभमृशी ४ डिम्भौ तु शिशुबालिशौ ॥ १३४ ॥ स्तम्भ स्थूणाजडीभावौ ६ शम्भू ब्रह्मत्रिलोचनौ ।
७ कुक्षिभ्रूणार्भका गर्भा ८ विस्रम्भः प्रणयेऽपि च ॥ १३५ ॥ ९ स्याद्वेय दुन्दुभिः पुंसि स्यादक्षं दुन्दुभिः स्त्रियाम् । १० स्यान्महारजने क्लीवं कुसुम्भं करके पुमान् ॥ १३६ ॥ ११ क्षत्रियेऽपि च नाभिर्ना
[ तृतीयकाण्डे -
' [ 'दव' (स्त्री) के सौंपकी फणा, कलछुल २ अर्थ हैं ] ॥
२ [ 'बिम्ब:' ( + विम्बः । पुन ) के सूर्य्यादिका मण्डल, आकृति, प्रतिबिम्ब, बिम्बिका-फल ( कुनरुन, त्रिकोलका फल ), ४ अर्थ हैं ] ॥ इति वा ( बा ) न्ताः शब्दाः ।
अथ भान्ताः शब्दाः |
'कुम्भः' (पु) के घड़ा, हाथी के मस्तकका कुम्भ ( मांस- पिण्ड - विशेष ), कुम्भ नामका ग्यारहवाँ राशि, वेश्या-पति, कुम्भकर्णका पुत्र, ५ अर्थ हैं ॥
४ 'डिम्भ:' ( g ) के बालक, मूर्ख, २ अर्थ हैं ॥
५ 'स्तम्भ:' ( पु ) के खम्मा, जडता, २ अर्थ हैं ॥
६ 'शम्भु' ( षु ) के ब्रह्मा, शिवजी, पूज्य, ३ अर्थ हैं ॥
७ 'गर्भः' ( पु ) के कुक्षि ( कोख ), गर्भ में रहनेवाला बच्चा या गर्भ, बालक, ३ अर्थ हैं ॥
८ 'विस्रम्भः' (+ विश्रम्भः । पु) के शृङ्गार-याचना, विश्वास, २ अर्थ हैं | ९ 'दुन्दुभि:' (पु) के मेरी बाजा, वरुण, दुन्दुभि नामका दैश्य, ३ अर्थ और 'दुन्दुभिः' (स्त्री) का लड़कों का खिलौना - विशेष 1 अर्थ है ॥
१० 'कुसुम्भम् : ' ( न ) के बर्रे ( कुसुम ) का फूल, सोना, २ अर्थ और 'कुसुम्भः' (पु) का कमण्डलु, १ अर्थ है ॥
११ 'नाभिः' (पु) के क्षत्रिय, जीतने की इच्छा करनेवाला या प्रधान
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