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मानार्थवर्ग: ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
-१ निधनं कुलनाशयोः। २ क्रन्दने रोदनाहाने ३ वर्म देहप्रमाणयोः ॥ १२३ ॥ ४ गृहदेहत्विट्प्रभावा धामान्य५थ चतुष्पथे ।
सनिवेशे च संस्थानं ६ लक्ष्म चिह्नप्रधानयोः ॥ १२४ ।।
आच्छादने संविधानमपवारणमित्युभे । 5 आराधनं साधने स्यादवाप्तौ तोषणेऽपि च ॥ १२५॥ ९ अधिष्ठान चक्रपुरप्रभावाध्यासनेष्वपि । १० रत्नं स्वजातिश्रेष्ठेऽपि ११ वने सलिलकानने ॥ १२६ ।। १२ तलिनं विरले स्तोके १३ पाच्यलिङ्ग तथोत्तरे । १४ समानाः सत्समैके स्युः१ निधनम्' (न ) के कुल ( वंश), नाश, २ अर्थ हैं ॥ २ 'क्रन्दनम्। न ) के रोनी, पुकारना, २ अर्थ हैं ॥ ३ वर्म ( = वर्मन् न ) के शरीर, प्रमाण, २ अर्थ हैं । ४ धाम' (धामन् न ) के घर, शरीर, तेज, प्रभाव, जन्म, शक्ति, ६
अर्थ हैं ।।
५ संस्थानम्' (न ) के चौरास्ता, अवयव-विभाग, भाकृति, मरना ४ अर्थ हैं ।
६ 'लक्ष्म' ( = टक्ष्मन् न ) के चिह्न, प्रधान, २ अर्थ हैं ।
७ 'आच्छादनम्' (न) के अच्छी तरह छिपना ( अन्तर्धान होना) कपड़े आदिसे ढाकना २ अर्थ हैं ॥
८ 'आराधनम्' ( न ) के साधन प्राप्ति होना, संतुष्ट करना, ३ अर्थ हैं । ९ 'अधिष्ठानम्' ( न ) के पहिया, ग्राम, प्रभाव, आक्रमण, ४ अर्थ हैं ।
१० रनम्' (न ) के अपने जातिवालों (सामान्य वर्ग) में श्रेष्ठ, मणि (जवाहरात ), २ अर्थ हैं ।।
" 'वनम' ( न ) के पानी, जङ्गल, निवास, घर, ४ अर्थ हैं के १२ तलिनम' (त्रि ) के विरल, गोड़ा, स्वच्छ. ३ बर्थ हैं ॥ १३ इस आगे सब नान्त शब्द वाच्य लिङ्ग (त्रिलिक)॥
१४ 'समान:' (त्रि) के पण्डित, समान (तुल्य ), मुख्य, ३ अर्थ 'समानः' (पु) का नाभि मण्डल में रहनेवाली वायु, . अथं हैं॥
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