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अमरकोषः। [तृतीयकाण्डे१ निर्यातनं वैरशुद्धौ दाने न्यालार्पणेऽपि च । २ व्यानं विपदि भ्रशे दोषे काम कोपजे ॥१२० ।। ३ पक्ष्माक्षिलोनिकिअल्के तत्वायंशेऽप्यणीयसि । ५ तिथिभेदे क्षणे पर्व ५ वर्त्म नेत्रच्छदेऽध्यान ॥ १२१ ॥ ६ अकार्यगुह्ये कोपीनं ७ मैथुनं संगतो रते। ८ प्रधानं परमात्मा धीः ९ प्रज्ञानं बुद्धिचिह्नयोः ॥ १२२ ।। १० प्रसूनं पुष्पफलयोः
१ 'निर्यातनम्' (न) के वैरशुद्धि (शत्रु से बदला लेना), दान, धरोहर (थाती) को वापस करना, ३ अर्थ हैं।
२ 'व्यसनम्' (न) के विपत्ति, नीचे गिरना, (अवनति होना), कामजन्य (शिकार, जुआ, मदिरा-पान, स्त्रीसङ्ग आदिसे उत्पन्न ) दोष, क्रोधजन्य (कठोर वचन, कठिन दण्ड आदिसे उत्पन्न ) दोष, निष्फल उद्यम, अशुभ भाग्य का बुरा फल, ६ अर्थ हैं ॥ ___३ 'पक्ष्म' ( = पक्ष्मन् न) के बरौनी (आँखका रोआ), किजल्क (कमलकेसर), सूत आदिका बहुत महीना हिस्सा, ३ अर्थ हैं ।
'पर्व' (पर्वन् न) के तिथि-भेद ( अमावस्या-पूर्णिमा आदि, प्रतिपद् और पञ्चदशी अर्थात् अमावस्या पूर्णिमाको सन्धि ), उत्सव, ग्रन्थका अंश (जैसे-आदिपर्व, वनपर्व, आदि), ३ अर्थ हैं ।
५ 'वर्म' (वर्मन् न) के पपनी (आँखको ढाकनेवाला चमड़ा, पलक,), रास्ता २ अर्थ हैं ।
'कौपीनम्' (न) के नहीं करने योग्य, लँगोटी, गुह्य (शिश्न ), ३ अर्थ हैं ।
७ 'मैथुनम्' (न) के स्त्री आदिका सम्बन्ध, स्त्रीके साथ संभोग करना, २ अर्थ हैं।
'प्रधानम्' (न) के परमात्मा, बुद्धि, मुख्य, सायशास्त्रोक्त प्रकृति, राजाका प्रधान सहाय, ५ अर्थ हैं ।।
९ 'प्रक्षानम्' (न) के बुद्धि, चिह्न २ अर्थ हैं । १. 'प्रसूनम् (न) के फूल, फल, २ अर्थ हैं ।
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