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नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाब्याख्यासहितः।
१ व्यञ्जन' लाञ्छनं श्मश्रुनिष्ठानावयवेष्वपि । २ स्यात्कौलीनं लोकवादे युद्धे पश्वहिपक्षिणाम् ॥ ११६ ।। ३ स्यादुद्यानं निःसरणे वनभेदे प्रयोजने । ४ अवकाशे स्थितौ स्थानं ५ क्रीडादावपि देवनम् ॥ ११७।। ६ उत्थानं पौरुषे तन्त्रे सन्निविष्टोद्गमेऽपि च । ७ व्युत्थानं प्रतिरोधे च विरोधाचरणेऽपि च ॥ ११८।। ८ मारणे मृतसंस्कारे गतौ द्रव्येऽर्थदापने ।
निर्वर्तनोपकरणानुवज्यासु च साधनम् ॥ ११९ ।।
'पञ्जनम् (न) के चिह्न, दाढ़ो-मूंछ ( हजामत), तेमन (दही कढ़ी, बरी बरा आदि) अवयव, ४ अर्थ हैं।
२ 'कौलीनम्' (न) के लोकापवाद, पशु (भेंडा आदि) पक्षियों (मुर्गातीतर आदि) आदिकी लड़ाई, कुलीनता, ३ अर्थ हैं ।
३ 'उद्यानम्' (न) के निकलना, वागीचा, प्रयोजन, ३ अर्थ हैं ।।
४ 'स्थानम्' (न) के अवकाश, स्थिति, सादृश्य ( बराबरी), ज्योंका त्यों रहना ( न घटना न बढ़ना), ४ अर्थ हैं ।।
५ 'देवनम्' (न) के क्रीडा आदिमें जीतनेकी इच्छा, व्यवहार, २ अर्थ और 'देवनः' (पु) का जुवा (धूत) १ अर्थ है।
६ उत्थानम्' (न) के पुरुषार्थ, तन्त्र (सैन्य, अपने मण्डल अर्थात् राज्य-विषयक चिन्ता, या पारिवारिक काम), ऊँचा उठना ( उन्नति करना), पुस्तक, युद्ध, सिद्धान्त, ६ अर्थ हैं ।।
७ 'युत्थानम्' (न) के तिरस्कार, चोरी आदि विरुद्ध आचरण, स्वतन्त्रता, ३ अर्थ हैं।
८ 'साधनम्' (न) के मरना (पारा आदिका शोधना), मरे हुएका संस्कार (दाह आदि) करना, जाना, धन, धन दिलाना (+ द्रव्यका उपपादन) थन पैदा करना, उपाय, पीछे २ चलना, सैन्य, मेढ़ , १० अर्थ हैं ।।
१. लाम्छनश्मश्रुनिष्ठानावयवेष्वपि' इति पाठान्तरम् ॥ २. 'द्रव्योपपादने' इति पाठान्तरम् ॥
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