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अमरकोषः ।
११२ ।।
१ ह दिम्यो वज्रतडितौ २ वन्दायामपि कामिनी ।। ३ त्वग्देहयोरपि तनुः ४ सूनाऽघोजिह्नि कापि च । ५ क्रतुविस्तारयारस्त्री वितानं त्रिषु तुच्छके ॥ ११३ ॥ मन्दे ६ ऽथ केतनं कृत्ये केतावुपनिमन्त्रणे । 'वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म ब्रह्मा विप्रः प्रजापतिः ॥ ११४ ॥ ८ उत्साहने च हिंसायां सूचने चापि गन्धनम् । प्रतीवापजवनाप्यायनार्थकम् ।। ११५ ।।
९ आतश्चन
१ 'ह्रादिनी' (स्त्री) के वज्र (इन्द्रका अस्त्र-विशेष), बिजली, २ अर्थ हैं ॥ २ 'कामिनी' (स्त्री) के बन्ना ( बाँदा अर्थात् पेड़के ऊपर ही उत्पन्न काष्ठ- विशेष), स्त्री, काम (इच्छा) करनेवालो खो, विलासिनी स्त्री, ४ अर्थ हैं ॥ ३ 'तनुः' (स्त्री) के त्वचा (छाल, चमड़ा), शरीर, २ अर्थ और 'तनुः" (त्रि ) के कृश, घोड़ा, विरल, ३ अर्थ हैं ॥
[ तृतीयकाण्डे
४ सूना' (स्त्री) के गलेकी घाँटी, प्राणियोंका वधस्थान, सन्तान, ३ अर्थ हैं ॥
५ ' वितानम्' (न पु ) के यज्ञ, विस्तार, चंदोवा, ३ अर्थ और 'वितानम्' (त्रि ) के तुच्छ, मन्द, २ अर्थ
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६ ' केतनम्' (न) के कार्य, पताका, निमन्त्रण (मित्रोंको उत्सव आदिमें जुलाना ), निवास, ४ अर्थ हैं ॥
७ 'ब्रह्म' ( = ब्रह्मन् न ) के ऋग्, यजुष, साम ये तीनों वेद, तत्र, तप, ब्रह्म, ४ अर्थ और 'ब्रह्मा' ( = ब्रह्मन् पु ) के ब्राह्मण, ब्रह्मा, २ अर्थ हैं ॥
८ 'गन्धनम्' ( न ) के उत्साहित करना, हिंसा करना, आशय प्रकट करना, ( + हिंसा - प्रयुक्त सूचना श्री० स्वा० ), प्रकाशन, ४ अर्थ हैं ॥
९ 'आतञ्चनम् ' ( न ) के जोरन डालना ( औंटे दूधमें दही छोड़कर दही जमाना । + गलाये हुए सोनेमें दूसरे द्रव्य के साथ अवचूर्णन करना हो० स्वा० ), वेग, तर्पण ( तृप्त ) करना, ३ अर्थ हैं ॥
१. 'वेदास्तत्त्वं' इति पाठान्तरम् ॥
२. 'हिंसार्थसूचने' इति श्री०
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स्वा० इति पाठान्तरम् ॥
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