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नानार्थवर्गः३] मणिप्रमाव्याख्यासहितः ।
४६१ १ 'कले शेऽपि वृजिनो २ विश्वकर्मार्कसुरशिल्पिनोः । ३ आत्मा यत्नो धृतिर्बद्धिः स्वभावो ब्रह्म वर्म च ॥ १०९ ॥ ४ शको घातकमत्तेमो वर्षुकाब्दो घनाघनः ! ५ अभिमानोऽर्थादिद माने प्रणयहिंसयोः ॥ ११० ॥ ६ धनो मेघे मूर्तिगुणे त्रिषु मूर्ते निरन्तरे। ७ इनः सूर्य प्रभौ ८ राजा मृगाङ्के क्षत्रिये नृपे ।। १११ ।। ९ वाणिन्यो नर्तकीदूत्यो १० सवन्त्यापि वाहिनी।
१ 'वृजिनः' (पु) का क्लेश (+केश), 'वृजिनम्' (न) का पाप, रक्तचर्म २ अर्थ और 'वृजिनः' (त्रि) का कुटिल, १ अर्थ है ॥
२ विश्वकर्मा (= विश्वकर्मन् पु) के सूर्य, देवताओंका कारीगर (बढ़ई), २ अर्थ हैं । - ३ 'आत्मा' ( = आत्मन् ए) के यत्न, धैर्य, बुद्धि, स्वभाव, ब्रह्म, शरीर, क्षेत्रज्ञ (ज्ञानी पुरुष), अर्थ हैं।
४ 'घनाघनः' (पु) के इन्द्र, घातुक (हिंसा करनेवाला) मतवाला हाथी, बरसनेवाला साल (वर्ष), ३ अर्थ हैं ।
५ 'अभिमान:' (पु) के धन आदिका घमण्ड, ज्ञान, प्रेम, हिंसा, ४ अर्थ हैं।
६ 'धनः' (पु) के बादल, कड़ापन, लोहेका मुद्गर, बाहुल्य, मुस्त, ५ अर्थ और 'घनः' (त्रि) के कटोर, गझिन, कासेका बाजा, ३ अर्थ हैं ।
७ 'इन:' (पु) के सूर्य, प्रभु या समर्थ, श्रेष्ठ, ३ अर्थ हैं ।
८ 'राजा' ( = राजन् पु) के चन्द्रमा, क्षस्त्रिय, राजा, स्वामी, यक्ष, इन्द्र, ६ अर्थ हैं।
९ वाणिनी' (स्त्री) के नाचनेवाली वेश्या आदि, दूती, चतुर स्त्री, मतवाली स्त्री, ४ अर्थ हैं।
१० 'वाहिनी' (स्त्री) के नदी, सेना, सेनाका भेद-विशेष (२१८१८१ का . चक्र), ३ अर्थ हैं।
१. 'केशे' इति पाठान्तरम् ॥ २. 'शक्रघातुकमत्तेमवषुकाब्दा धनापनाः' इति पाठान्तरम् ।।
३. कचित्तु -'घनो..."निरन्तरे' इत्ययमंशः अभिमानो..."हिंसयोः' इत्यस्यानन्तरं पठ्यते ॥
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