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अमरकोषः
[ तृतीयकाण्डे.
अथ नान्ताः शब्दाः। १ सूर्यवही रिप्रभानू २ भानू रश्मिदिवाकरी । ३ भूतात्मानौ धातृदेहौ मूर्खनीचौ पृथग्जनी ॥ १०५॥ ५ नावादी शैल पाषाणी ६ पत्रिणी शरपक्षिणी। ७ तरुशैली शिखरिणौ ८ शिखिनो बहिबर्हिणौ ॥ १०६ ॥ ९ प्रतियत्नावुभौ लिप्सोपग्रहा १० वथ सादिनौ ।
द्वो सारथियारोदौ ११ वाजिनोश्वेषुपक्षिणः ॥ १०७॥ १२ कुलेऽप्यभिजनो जन्मभूम्यामप्य १३ थ हायनाः ।
वर्षाविज्ञहिभेदाश्च १४ चन्द्राएको विरोचनाः ॥ १०८॥
अथ नान्ताः शब्दाः । १ 'चित्रभानु' (पु) के सूर्य, अग्नि, २ अर्थ हैं ॥ २ 'भानु' (पु) के किरग, सूर्य, २ अर्थ हैं । ३ 'भूतात्मा' ( = भूतात्मन् पु) के ब्रह्मा, शरीर, २ अर्थ हैं ॥ ४ 'पृथग्जनः' (पु) के मूर्ख, नीच, २ अर्थ हैं ॥ ५ 'ग्रावा' ( = ग्रावन् पु) के पहाड़, पत्थर, २ अर्थ हैं ॥
६ 'पत्री' ( = पत्रिन् पु ) के बाण, पक्षी, बाज चिड़िया, रथिक, पहाड़, ५ अर्थ हैं ॥
७ 'शिखरी' ( = शिखरिन् पु), के पहाड़, २ अर्थ हैं ।
८ 'शिस्त्री' ( = शिखिन् पु) के मोर, अग्नि, पेड़, मुर्गा, पक्षी, बाण, केतु नामका ग्रह, ७ अर्थ हैं ।
९ 'प्रतियत्नः' (पु) के लिप्सा, वन्दी-ग्रहणादि, संस्कार, ३ अर्थ हैं ॥ १० 'सादी' ( = सादिन् पु) के सारथि, घुड़सवार, २ अर्थ हैं । 9. 'वाजी' ( - वाजिन् पु) के घोड़ा, बाण, पक्षी, ३ अर्थ हैं ।
१२ 'अभिजनः' (पु) के वंश (खान्दान), जन्म भूमि, ख्याति, कुलसमूह, ४ अर्थ हैं ।
१३ 'हायन' (पु) के वर्ष, किरण, नोवार (तिबी) आदि अन्न, ३ अर्थ हैं। १४ 'विरोचनः' (पु) के चन्द्र, अग्नि, सूर्य, ३ अर्थ हैं।
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