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४५४ अमरकोषः।
[तृतीयकाडे१ समर्थस्त्रिषु शक्तिस्थे संबद्धार्थे हितेऽपि च । २ दशमीस्थी क्षीणरागवृद्धौ ३ वीथी पदव्यपि ॥ ८७॥ ५ आस्थानीयत्नयोरास्था ५ प्रस्थोऽस्त्री सानुमानयोः।। ६ "शास्त्रद्रविणयोर्ग्रन्थः ७ संस्थाऽऽधारे स्थिती मृतौ (५२)
इति थान्ताः शब्दाः।
अथ दान्ताः शब्दाः । ८ अभिप्रायवशी छन्दा ९ वदो जीमूतवत्सरो ॥ ८८ ।। १. अपवादी तु निन्दाशे ११ दायादौ सुतवान्धवी। १२ पादा रश्म्यघ्रितुर्याशा १३ श्चन्द्राग्न्यास्तमोनुदः ॥ ८९ ।। , 'समर्थः' (त्रि) के बलवान् , सम्बद्ध अर्थ, हित, ३ अर्थ हैं ।। २ 'दमशीस्थः' (त्रि) के क्षीण रागवाला (प्रेमहीन), वृद्ध, २ अर्थ हैं ।।
३ 'वीथी' (स्त्री) के रास्ता (गली), पङ्क्ति (कतार), गृहप्रान्त ३ अर्थ हैं।
४ 'आस्था ' (स्त्री) के सभा, उपाय, आलम्बन, अपेक्षा, ४ अर्थ हैं ।। ५ 'प्रस्थः ' (पु) के शिखर (कँगूरा), परिमाण-विशेष (सेर), २ अर्थ हैं। ६ [ 'ग्रन्थः ' (पु) के शास्त्र, धन, २ अर्थ हैं ] ॥
७ [ 'संस्था' (स्त्री) के आधारं, स्थिति, मृति, संस्था ( सभा, सोसायटो आदि), ४ अर्थ हैं.] ॥
इति थान्ताः शब्दाः ।
अथ दान्ताः शब्दाः। ८ 'छन्दः' (पु) के अभिप्राय, वश, २ अर्थ हैं । ९ 'अन्दः' (पु) के मेघ, वर्ष, पर्वत विशेष, मोथा, ४ अर्थ हैं।
१० 'अपवादः' (पु) के निन्दा, आज्ञा, विश्रम्भ, निरवकाश (बाधक) सूत्रादि, ४ अर्थ हैं।
११ दायादः' (पु) के पुत्र, परिवार, २ अर्थ हैं । १२ पाद: (पु) के किरण, पैर, चौथाई हिस्सा, ३ अर्थ है। १३ 'तमोनुत्' ( = तमोनुद् पु) के चन्द्र, अग्नि, सूर्य, ३ अर्थ हैं ।। १. 'अयं क्षेपकांशः क्षी० स्वा व्याख्यानेऽमरविवेकमूलपुस्तके तयाख्याने चोपलभ्यते ॥
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