________________
नानार्थवर्ग:३] भणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
४५३ . १ आप्तौ लब्धप्रत्ययिती २ नहा पुनश्च पुत्रयोः (४८) ३ समूहोत्पन्नयो त ४ मांजिटीपीन्द्रयोः (४१) ५ सौतिकेऽपि प्रशतो ६ ऽशावपातयतटावटी (५०) ७ समित्सने रणेऽपि स्त्री ८ व्यवस्थायामपि स्थितिः' (५१)
शति तान्ताः शब्दाः ।
अथ थान्ताः शब्दाः । ९ सर्थाऽभिधेयरैवस्तुप्रयोजननिवृत्तिषु ।। १० निपानागमयास्तार्थमृषिजुटे जले गुरौ ॥ ८६ ।।
1 [ 'आप्तः' (त्रि) के लब्ध (मिला हुआ ), निश्वस्त, २ अर्थ हैं ] ॥
२ [ 'नता' ( = नप्त पु), का पोता (पुत्र का पुत्र ), नातो (पुत्रीका पुत्र), २ अर्थ हैं ] ॥
३ [ 'जातम्' (न) का समूह, अर्थ और 'जातम्' (त्रि) का उत्पन्न, १ अर्थ है ॥
४ [ 'अहिजित्' (पु) के विशु, इन्द्र, २ अर्थ हैं ] ॥ ५ [ 'प्रतापः' (पु) के पहाड़ का झरना, लेटना, २ अर्थ हैं ] || ६ [ 'अवपातः' (पु) के अतट (विना किनारावाला), गढा, २ अर्थ हैं ] ॥ ७ [भित्( स्त्री) ॐ संग, मद, २ अथ हैं ] ।। ८ [ स्थितिः' (स्त्री) के व्यवस्था, निवासस्थान, टिकाव, ३ अर्थ है ] ॥
इति तान्ताः शब्दाः ।
अथ धावा शब्दाः । ९ 'अर्थः' (पु) के कहने योग्य, धन, वस्तु, प्रयोजन, (उद्देश्य, मतलब), निवृत्ति, ५ अर्थ हैं ॥
१. 'तीर्थम्' (न) के कूपादिके पासका जलाशय ( गढा । + सीढ़ी मुकु० । + निदान अर्थात् उपाय), बौद्धशास्त्रसे भिन्न शास्त्र, ऋपिसे सेवित जल, गुरु, यज्ञ, पुण्यक्षेत्र, यज्ञवाला, स्त्री-रज, योनि, पात्र, दर्शन, ११ अर्थ हैं । १. 'निदानागमयोस्तीर्थमृषिजुष्टे' इति पाठान्तरम् ।।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org