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अमरकोषः ।
[ तृतीयकाण्डे
इन्द्रियाण्यश्मविकृतिः शब्दयोनिश्च धातवः ।। ६५ ।। १ कक्षान्तरेऽपि शुद्धान्तो नृपस्यासर्वगोचरे । २ कासूसामर्थ्ययोः शक्ति३र्मूत्तिः काठिन्यकाययोः ॥ ६६ ॥ ४ विस्तारवल्ल्योर्वततिर्वसती रात्रि वेश्मनोः ।
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६ क्षयार्चयोरपचितिः ७ सातिर्दानावसानयोः ॥ ६७ ॥ ८ 'अर्तिः पीडाधनुष्कोट यो९र्जातिः सामान्यजन्मनोः । १० प्रचारस्यन्दयो रीतिः
पच आदि शब्दोत्पत्ति के कारण भूत व्याकरणशास्त्रसम्मत धातु, सोना-चाँदीताँबा - पीतल आदि धातु, ९ अर्थ हैं ॥
' 'शुद्धान्तः' (पु) के रनिवास ( राजाका महल - जहाँ सब कोई नहीं जा सकता ऐसा राजाकी रानियोंका निवासगृह ), राजाकी स्त्रियाँ, अशौचका अन्त, ३ अर्थ हैं ॥
२ 'शक्ति' (स्त्री) के बछ, सामर्थ्य, २ अर्थ हैं ॥ ३ 'मूर्त्तिः' (स्त्री) के कठोरता, शरीर, २ अर्थ हैं ॥
४ 'व्रततिः' ( स्त्री ) के विस्तार, लता, २ अर्थ हैं ॥
६ 'अपचितिः' (स्त्री) के क्षय, पूजा, खर्च, ३ अर्थ हैं ॥
७ 'सातिः ' ( स्त्री ) के दान ( गज-मदका जल ), अन्त, २ अर्थ हैं | ८ 'अर्तिः' ( + आर्त्तिः । खी ) के दुःख, धनुषका दोनोंका किनारा (छोर) २ अर्थ हैं ॥
९ 'जातिः' (स्त्री) के सामान्य अर्थात् जाति ( जैसे- गोव, ब्राह्मणत्व, आदि), जन्म, मालती नामका फूल, छन्द, जातीफल, गोत्र, आँवला, ७अर्थ हैं ॥
१० 'शीतिः' (स्त्री) के रिवाज ( रस्म, लोकाचार ), छन्द, धीरे २ बहना, टपकना, पीतल, लोहेकी मैल ( मण्डूर ), वैदर्भी आदि ( गौडी, पाञ्चाली, लाटिका) काव्य के रसादि-संबन्धी चार रीति, ५ अर्थ हैं ॥
१. 'आतिं:' इति पाठान्तरम् ॥ २. तदुक्तं विश्वनाथेन -- ' पदसंघटना
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रीतिरङ्गसंस्थाविशेषवत् ।
उपकर्त्री रसादीनां सा पुनः स्याच्चतुर्विधा ॥ वैदर्भी चाथ गौडी च पाञ्चाली काटिका तथा' ।
इति सा० द० ९ ६ ४४ - ६४५
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