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मानार्थवर्गः३] मणिप्रभाब्याख्यासहितः।
४४५ १-सूतस्त्वष्टरि सारथौ। २ व्यक्तः प्राशेऽपि ३ 'दृष्टान्तावुभौ शास्त्रनिदर्शने ॥ ६ ॥ ४ क्षता स्यात्सारथौ द्वास्थे क्षत्रियायां च शद्रजे। ५ वृत्तान्तः स्यात्प्रकरणे प्रकारे कार्यवार्तयोः ॥ ६३ ॥ ६ आनतः समरे नृत्यस्थाननीवृद्विशेषयोः। ७ कृतान्तो यमसिद्धान्तदैवाकुशलकर्मसु ॥६४॥ ८ श्लेष्मादिरसरतादिमहाभूतानि तद्गुणाः ।
१ 'सूतः' (पु) के बढ़ई, सारथि, पत्रिय जातिके पितासे ब्राह्मण जातिकी मातामें उत्पन्न संतान, बन्दी, पारा, ५ अर्थ और 'सूतः' (त्रि) के जन्मा (पैदा) हुआ, प्रेरित, २ अर्थ हैं।
२ 'व्यक्तः' (पु) के विद्वान् , स्पष्ट, २ अर्थ हैं । ३ 'इष्टान्तः' (पु) के तर्क आदि शास्त्र, उदाहरण, २ अर्थ हैं ॥
४ 'क्षत्ता' ( = क्षतृ पु), के सारथि, द्वारपाल, शूद्र जातिके पितासे क्षत्रिय जातिकी मातामें उत्पन्न संतान, वेश्या-पुत्र, नियुक्त, ब्रह्मा, ६ अर्थ हैं ।
५ 'वृत्तान्तः' (पु) के प्रकरण (अवसर), प्रकार ( तरह, भाव, यथापाँच प्रकारके छः प्रकारके,....") साकल्य (पूरा २), बात, ४ अर्थ हैं ।
६ 'आनः ' (पु) के लड़ाई, नाचघर, देश-विशेष (पश्चिम समुद्रके पासको द्वारावती अर्थात् द्वारकापुरी), ३ अर्थ हैं ॥
७ 'कृतान्तः' (पु) के यमराज, सिद्धान्त, भाग्य, पापकर्म, ४ अर्थ हैं ।
८ 'धातुः' (पु) के कफ आदि (थूक, खखार, पित्त, आदि), रस (भोजन करने बाद उत्पन्न अनादिका विकार-विशेष), खून आदि (चर्बी, मज्जा, वीर्य, मांस, पीव, हड्डी आदि), पृथ्वी आदि, (जल तेज, वायु, आकाश), पञ्च महाभूत, उन ( पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ) के गुण (गंध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द ), इन्द्रिय (आँख आदि पूर्वोक्त (१०५८) ११ इन्द्रिय), हरताल, मैनसिल, गेरू आदि पत्थरके विकारसे उत्पन्न धातुः भूः, एध,
'. 'दृष्टान्ताउभे' इति पाठान्तरम् ॥ २. 'वेश्यायां च हत्यपपाठश्छन्दोमङ्गात् । ३. 'इलेष्मादिरस्थिरतादिमहाभूतानि' इति पाठान्तरम् ॥
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