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अमरकोषः। [तृतीयकाण्डे१ हस्तौ तु पाणिनक्षत्रे २ मरुती पवनामरौ । ३ यन्ता हस्तिपके सूते ४ भर्ता धातरि पोष्टरि ॥ ५९॥ ५ यानपात्रे शिशौ पोतः६ प्रेतः प्राण्यन्तरे मृते। ७ प्रहभेदे वजे केतुः ८ पार्थिवे तनये सुतः॥६०॥ ९ स्थपतिः कारुभेदेऽपि १० भूभृभूमिधरे नृपे। ११ मृर्द्धाभिषिक्तो भूपेऽपि १२ ऋतुः स्त्रीकुसुमेऽपिच ॥ ६१ ॥ १३ विष्णावप्यजिताव्यक्ती
१ 'हस्तः ' (पु) के हाथ, हस्त नामक तेरहवाँ नक्षत्र, २ अर्थ हैं। २ 'मरुद (पु) के वायु, देवता, २ अर्थ हैं।
३ 'यन्ता' ( = यन्तृ पु) के हाथोवान, सारथि (कोचवान, एकावान, ड्राइवर आदि), २ अर्थ हैं ॥
४ 'भर्ता (= भर्तृ पु), बह्मा, पोषण (रक्षा) करनेवाला, पति, ३ अर्थ हैं । ५ 'पोत:'(पु)के जहाज, बालक, २ अर्थ हैं । ६ 'प्रेतः' (पु) के प्रेत ( योनि-विशेष ) मरा हुआ जीव, २ अर्थ हैं । ७ 'केतुः (1) के केतु नामका ग्रह, पताका २ अर्थ हैं । ८ 'सुतः' (पु) के राजा पुत्र, २ अर्थ हैं ।
९ 'स्थपतिः' (पु) के बढ़ई, कंचुकी, बृहस्पतिके मन्त्रसे यज्ञ करनेवाले, ६ अर्थ हैं ।
१० 'भूभृत् (पु) के पहाड़, राजा, २ अर्थ हैं।
११ 'मूर्धाभिषिक्तः' (पु), के राजा, प्रधान, मन्त्री, क्षस्त्रियमात्र ब्राह्मण जातिके पितासे क्षत्रिय जातिकी मातामें उत्पन्न संतान, ५ अर्थ हैं ।
१२ 'ऋतुः' (पु) के स्त्रियोंका मासिक धर्म, हेमन्त आदि (१।४।१३ में उक्त) छः ऋतु २ अर्थ हैं॥
१३ 'अजितः' (पु) के विष्णु, शिवजी, २ अर्थ और 'अजितः' (त्रि) का नहीं हारा हुआ । अर्थ, तथा 'अव्यक्त' (पु) के विष्णु, शिवजी, मूर्ख, ३ अर्थ; 'अव्यक्तम् (न) महदादिक, आत्मा २ अर्थ और 'अध्यक्तम्' (त्रि) का अस्पष्ट, १ अर्थ हैं।
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