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नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
-१ ईतिडिम्बप्रवासयोः ॥ ६८ ॥ २ उदयेऽधिगमे प्राप्तिस्त्रेता स्वग्नित्रये युगे। ४ वीणाभेदेऽपि महती ५ भूतिर्भस्मनि संपदि ।। ६९ ॥ ६ नदीनगर्यो गाना भोगवत्यऽथ संगरे ।
सने सभायां समितिः ८ क्षयवासावपि 'क्षिति ॥ ७० ॥ ९ रवेरर्चिश्व शस्त्रं च वह्निज्वाला च हेतयः । १० जगती जगति च्छन्दोविशेषेऽपि क्षितावपि ॥ ७१ ॥
१ 'ईतिः' (स्त्री) के विप्लव ( बहुत वर्षा होना, सूखा पड़ना अर्थात् वर्षाका न होना; टिड्डी, मुसे, सुग्गेका, लगना, राजाका पास आना; ये ६ उप. इव), परदेश जाना, २ अर्थ हैं ॥
२ प्राप्तिः' के उत्पत्ति, पाना, २ अर्थ हैं ॥
३ 'त्रेता' (स्त्री) के दक्षिण, गार्हपत्य और हवनीय नामके तीन अग्निविशेष, त्रेता नामक युग, २ अर्थ हैं ॥
४ 'महती' (स्त्री) के नारद ऋषिकी वीणा, महत्त्वसे युक्त (बड़ी) स्त्री,
५ भूतिः' (स्त्री) के भस्म (राख), सम्पत्ति, हाथोका शृङ्गार,
६ 'भोगवती' (स्त्री) के दौकी नदी, सों की नगरी ( पाताल),
७ 'समितिः' ( स्त्री) के युद्ध, सङ्ग, सभा ३ अर्थ हैं । ७ 'क्षितिः' (स्त्री) के विनाश, निवास, पृथ्त्री कालभेद, ४ अर्थ हैं ॥ ९ 'हेतिः' (स्त्री) के सूर्य की किरण, हथियार, आगकी ज्वाला ३ अर्थ हैं ।
१० जगती (स्त्री) के संसार, बारह अक्षर के ( जैसे-वंशस्थ, तोटक, इन्द्रवंशा आदि ) छन्द, पृथ्वी, जन, ४ अर्थ है ॥
१. क्षितिः' इति पाठान्तरम् ॥ २. शव पड् भवन्ति । ता यथा -
'अतिवृष्टिर नावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः।
प्रत्यासन्नाश्च राजानःपडेता ईतयः स्मृताः' ॥ इति । कचित्त-स्वचक्रं पर चक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः इत्येवमुत्तरार्द्ध दृश्यते ॥
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