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अमरकोषः।
[ तृतीयकाण्डे१ करेणुरिभ्यां स्त्री नेभे २ द्रविणं तु बलं धनम् ॥ ५२ ॥ ३ शरणं गृहरक्षित्रोः ४ श्रीपर्ण कमलेऽपि च । ५ विषाभिमरलोहेषु तीक्ष्णं क्लीबे खरे त्रिषु ॥ ५३॥ ६ प्रमाणं हेतुमर्यादाशास्त्रेयत्तापप्रमातृषु । ७ करणं साधकतमं क्षेत्रगानेन्द्रियेष्वपि ॥५४॥ ८ प्राण्युत्पादे संसरणमसंबाधचमगतौ ।
घण्टापथे९थ वान्तान्ने समुगिरणमुन्नये ॥ ५५ ॥ १० अतस्त्रिषु विषाणं स्यात्पशुगेभेवन्तयोः ।
. 'करेणुः' (स्त्री) का हथिनी, १ अर्थ और 'करेणुः' (पु) का हाथी, १ अर्थ है ।
२ 'द्रविणम्' ( न ) के बल, धन, २ अर्थ हैं । ३ 'शरणम्' (न) के मकान (घर), रक्षक, २ अर्थ हैं ।
४ 'श्रीपर्णम्' (न) के कमल, अरणि ( यज्ञमें रगड़कर आग पैदा करने योग्य काष्ठ-विशेष ), २ अर्थ हैं ।
५ 'तीक्ष्णम्' (न) के विप, लड़ाई, लोहा, ३ अर्थ और 'तीक्ष्णम्' (त्रि ) का तेज हथियार आदि, १ अर्थ है ।।
६ 'प्रमाणम्' (न) के हेतु (जैसे-पहाडपर अग्निका अनुमान करने में धुओं हेतु है,... ), सीमा (हद ), शास्त्रकी इयत्ता, प्रमाता, ४ अर्थ हैं ।
७ 'करणम्' (न) के कामकी सिद्धि में अत्यंत उपकारक (जैसे-मारनेमें बाण-तलवार आदि ), क्षेत्र, शरीर, इन्द्रिय, ४ अर्थ हैं ।
८ 'संपरणम्' (न) के प्राणियोंकी उत्पत्ति, मेनाका निर्विघ्न आगे बढ़ना, राजमार्ग ( सड़क), ३ अर्थ हैं ।।
समुद्रिणम्' ( + समुद्धरणम् । न ) के उल्टो (वमन, कय ) किया हुआ अन्न आदि, किसी चीजको ऊपर खींचना या उठाना, उखाड़ना, ३ अर्थ हैं ।
१० 'विषाणम्' (त्रि) के सींग, हाथीका दाँत. २ अर्थ हैं ॥
१. 'समुद्धरणमुगिरे' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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