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मानार्थवर्ग:३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।।
१ अरुणो भास्करेऽपि स्यावणंभेदेऽपि च त्रिषु ॥४८॥ २ स्थाणुः शर्वेऽस्य३थ द्रोणः काकेऽप्याजौ रवे रणः । ५ ग्रामणी पिते पुंलि श्रेष्ठे प्रामाधिपे त्रिषु ।। ४९ ॥ ६ ऊर्णा मेषादिलोमिन स्यादावर्ते चान्तरा 'भ्रवो। . ७ हरिणी स्यान्मृगी हेमप्रतिमा हरिता च या ॥५०॥
त्रिषु पाण्डौ च हरिणः ८ स्थूणा स्तम्भेऽपि वेश्मनः । ९ तृष्णे स्पृहापिपासे द्वे १० जुगुप्साकरुणे घृणे ॥५१॥ ११ वणिक्पथे च विपणिः १२ सुरा प्रत्यक्च वारुणी।
१ 'अरुण' (पु) का सूर्य, सूर्यका सारथि, सन्ध्या समयकी लालिमा, कुष्ठ, ४ अर्थ और 'अरुणः' (त्रि ) का लाला रङ्गवाला, १ अर्थ है ॥
२ 'स्थाणुः' (पु) के शिवजी, खुत्थ (बिना डाल-पातका सूखा हुआ पेड़) आदि स्थिर पदार्थ, २ अर्थ है । __३ 'द्रोण' (पु) के कौआ, द्रोणाचार्य, द्रोण (परिमाण-विशेष ), ३ अर्थ हैं।
४ 'रण' (पु) के लड़ाई, शब्द, २ अर्थ हैं ।।
५ 'ग्रामणी' (पु) का नाई (हजाम), १ अर्थ और 'ग्रामणी' (त्रि) के श्रेष्ठ, ग्रामका स्वामी ( सरपञ्च, डीहा ), २ अर्थ हैं ।।
६ 'ऊर्णा' (स्त्री) के उन (भेंड़ आदिका रोआ), दोनों भौंहों के बीचवाला भाग, २ अर्थ हैं।
७ 'हिरिणि' (स्त्री) के मृगी, सोनेकी मूर्ति, हरे रंगवाली, ३ अर्थ और 'हरिणः' (त्रि) के पाण्डु (कुछ २ पीलापन लिये सफेद) रंग, हरिना, २ अर्थहैं ।
८ 'स्थूणा' (स्त्री) के घरका खम्भा, लोहेकी मूर्ति, रोग-विशेष, ३ अर्थ हैं ।
९ 'तृष्णा' (स्त्री) के स्पृहा ( अभिलाषा), प्यास, २ अर्थ हैं । १० 'घृणा' (स्त्री) के घृणा (नफरत), करुणा, २ अर्थ हैं । ११ 'विपणिः' (स्त्री) के बाजार (कटरे) की गलो, दूकान, २ अर्थ हैं । १२ 'वारुणी' (स्त्री) के मदिरा, पश्चिम दिशा, २ अर्थ हैं। १. 'ध्रुवौ' इति पाठान्तरम् ॥
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