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अमरकोषः।
[तृतीयकाण्ड-१ व्यूढौ विन्यस्तसंहती। इति ढान्ताः शब्दाः।
अथ णान्ता: शब्दाः। २ भ्रूणोऽर्भके स्त्रैणगर्भ ३ बाणो बलिसुते शरे ॥१५॥ ४ कणोऽतिसुक्ष्मे धान्यांशे ५ संघाते प्रमथे गणः। ६ पणो द्यूतादिषुत्सृष्टे भृतौ मूल्ये धनेऽपि च ॥ १६ ॥ ७ मौया द्रन्याश्रिते सत्त्वशौर्यसन्ध्यादिके गुणः । ८ निर्व्यापारस्थिती कालविशेषोत्सवयोः क्षणः ॥४७॥ ९ वर्णो द्विजादौ शुक्लादौ स्तुतौ वर्ण तु पाक्षरे । १ 'व्यूहः (त्रि) के रचित, मिला हुआ (संहत ), २ अर्थ हैं ।
इति ढान्ताः शब्दाः ।
अथ णान्ताः शब्दाः । २'भ्रूण' (पु) के बालक, स्त्रीका गर्भ, २ अर्थ हैं । ३ 'बाणः' (पु) के बलिका पुत्र (बाणासुर), बाण, २ अर्थ हैं ॥
४ 'क' (पु) के अत्यन्त सूक्ष्म (पानीकी छोटी २ बूदें, मोतीके दाने,.. ), धान्य (अन्न) की खुद्दी, २ अर्थ हैं ॥ ___५ 'गण' (पु) के समूह, शिवजीके दूत, सेनाको संज्ञा विशेष, ३अर्थ हैं । ( देखिये-२।८८१ की टिप्पणी)
६ 'पण' (पु) के जुआ आदिमें दावपर रक्खा हुआ धन आदि, वेतन या मजदूरी, कीमत, धन, ४ अर्थ हैं ॥
७ 'गुणः' (पु) के धनुषकी ताँत, रूप-रस आदि २४ गुण, सत्व-रजसतमस् ३ गुण, बहादुरी, चातुर्य-पाण्डित्य आदि गुण, सन्धि-विग्रह आदि (पृ. २६९) ६ गुण, इन्द्रिय, ६ अर्थ हैं।
'क्षण' (पु) के निकम्मा होकर बैठे रहना, एक घड़ीका बारहवाँ हिस्सा या ३ मिनटका समय-विशेष, उत्सव, ३ अर्थ हैं ॥
९ वर्णः' (पु) के ब्राह्मण-पस्त्रिय-वैश्य-शूद्र ये ४ जाति, सफेद-लाल-पीला आदि रंग तथा स्तुति (व्रत, गुण, गीतका ताल विशेष, यश) ये अर्थ और 'वर्णम् (न)का अधर, १ ही अर्थ है ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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