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भानार्थवर्गः३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
१ काण्डोऽस्त्री दण्डयाणार्ववर्गावसरवारिषु ॥४३॥ २ स्याद्भाण्डमश्वाभरणेऽमत्रे मूलवणिग्धने ! ३ "संघातग्रालयोः पिण्डी द्वयोः पुंसि कलेवरे (१०) ४ गण्डौकपोलविस्फोटौ ५ मुण्डकं त्रिपु मुण्डिते' (४१)
इति डान्ताः शब्दाः ।
अथ ढान्ताः शब्दाः। ६ भृशप्रतिज्ञयोर्बाद ७ प्रगाढं भृशकृच्छ्रयोः ॥४४॥ ८ शक्तस्थूलो त्रिषु दृढौ
१ 'काण्डः' (पु न) के दण्ड, बाण, निन्दित, वर्ग (प्रकरण, जैसेवाल्मीकीयमें-बाल काण्ड, अयोध्याकाण्ड, अमरकोषमें-प्रथमकाण्ड,... ), अवसर, पानी, ६ अर्थ हैं ।
२ 'भाण्डम्' (न) के घोड़ेका भूषण, बर्तन, व्यापार आदिमें लगाये हुए बनिये आदिका मूल धन, ३ अर्थ हैं ।
३ ["पिण्डी' (स्त्री पु) के समूह, ग्रास, २ अर्थ और 'पिण्डी' (पु) का शरीर, १ अर्थ है ] ॥
४ [ 'गण्ड (पु) के गाल, विस्फोट ( फोड़ा आदि), २ अर्थ हैं ] ॥ ५ [ 'मुण्डकम्' ( + मुण्डम् । त्रि) के मुण्डित, शिर, २ अर्थ हैं ] ॥
इति डान्ताः शब्दाः।
अथ ढान्ताः शब्दाः । ६ 'बातम्' (न) का अत्यन्त, १ अर्थ और 'बाढम्' (अ.) के प्रतिज्ञा, स्वीकार, २ अर्थ हैं ॥
७ 'प्रगाढम्' (न) के अत्यन्त, कष्ट, २ अर्थ हैं ॥ ८ 'ढ' (त्रि) के समर्थ, मोटा या पुष्ट, अच्छी तरह, ३ अर्थ हैं ॥ 'संघात "मुण्डिते इति क्षेपकांशः क्षी० स्वा० व्याख्यायां मूलमात्रमुपलभ्यते इति प्रकृतो५योगितयाऽयं मया मूले क्षेपकत्वेन निहितः ।।
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