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अमरकोषः ।
[ तृतीय काण्डे -
३ रसे
१ देवशिल्पिन्यपि स्वश २ दिष्टं देवेऽपि न द्वयोः । कटुः कट्बकायें त्रिषु मत्सरतीक्ष्णयोः ॥ ३५ ॥ ४ प्रिं क्षेमाशुभाभावेष्वरिष्टे तु शुभाशुभे । ६ मायानिचलयन्त्रेषु कैतवानृतराशिषु ॥ ३६ ॥ अयोधने शेट कूटमस्त्रियाम् । संशयेऽपि सा ॥ ३७ ॥ लग्नकचे जटा ।
सीराङ्गे
७ सूक्ष्मैवायां त्रुटि: स्त्री स्यास्कालेऽल्पे ८ आकर्षाश्रियः कोट्यो ९ मूले
आदि कारण जिसके शिरके बाल गिर गये हों), खराब चमड़ेवाला ( + नपुंसक क्षी० स्वा० ), शिवजी विष्णुजी, ४ अर्थ हैं ॥
१ 'स्वप्न' ( वपु ), के विश्वकर्मा ( देवताओंका बढ़ई या कारीगर ), बारह सूयोंमें से एक सूर्य, बढ़ई, ३ अर्थ हैं ॥
२ दिष्टम्' (न) का भाग्य, १ अर्थ और 'दिष्टः' (पु) का समय, १ अर्थ है ॥
३ 'कटुः' (पु) का कहुवा, १ अर्थ; 'कटु' ( न ) का नहीं करने योग्य * १ अर्थ और 'कटुः' (त्रि) के मत्सर ( दूसरे की भलाई से द्वेष करना ), तीक्ष्ण, १ अर्थ हैं ॥
४रिष्टम्' (न) के कल्याण, अशुभका अभाव, २ अर्थ हैं ॥ ५ 'अरिष्टम्' (पु) के शुभ, अशुभ, २ अर्थ हैं ॥
६ ' कूटम् ' ( न पु ) के माया, निश्चल ( आकाशादि ), हरिना आदि फँसानेका का यन्त्र - विशेष ( जाल आदि ), कपट, असत्य, गल्ला ( अन्न आदि की ढेरी ), लोहका हथौरा, पहाड़की चोटी, हलके आगेवाला भाग, ९ अर्थ हैं ॥ 'त्रुटि' (स्त्री) के चोटी इलायची, समय-भेद, न्यूनता ( कमी ) संशय, ४ अर्थ हैं ॥
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८ 'कोटि' (खो ) के धनुषके दोनों छोर, प्रकर्ष, कोण करोड़ ( संख्याविशेष ), ४ अर्थ हैं ॥
९ 'जटा' (स्त्री) के पेड़ आदिको जड़, जटा ( मुनि आदिके सटे हुए बाल ), जटामासी, ३ अर्थ हैं ॥
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