SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३६ अमरकोषः । [ तृतीय काण्डे - ३ रसे १ देवशिल्पिन्यपि स्वश २ दिष्टं देवेऽपि न द्वयोः । कटुः कट्बकायें त्रिषु मत्सरतीक्ष्णयोः ॥ ३५ ॥ ४ प्रिं क्षेमाशुभाभावेष्वरिष्टे तु शुभाशुभे । ६ मायानिचलयन्त्रेषु कैतवानृतराशिषु ॥ ३६ ॥ अयोधने शेट कूटमस्त्रियाम् । संशयेऽपि सा ॥ ३७ ॥ लग्नकचे जटा । सीराङ्गे ७ सूक्ष्मैवायां त्रुटि: स्त्री स्यास्कालेऽल्पे ८ आकर्षाश्रियः कोट्यो ९ मूले आदि कारण जिसके शिरके बाल गिर गये हों), खराब चमड़ेवाला ( + नपुंसक क्षी० स्वा० ), शिवजी विष्णुजी, ४ अर्थ हैं ॥ १ 'स्वप्न' ( वपु ), के विश्वकर्मा ( देवताओंका बढ़ई या कारीगर ), बारह सूयोंमें से एक सूर्य, बढ़ई, ३ अर्थ हैं ॥ २ दिष्टम्' (न) का भाग्य, १ अर्थ और 'दिष्टः' (पु) का समय, १ अर्थ है ॥ ३ 'कटुः' (पु) का कहुवा, १ अर्थ; 'कटु' ( न ) का नहीं करने योग्य * १ अर्थ और 'कटुः' (त्रि) के मत्सर ( दूसरे की भलाई से द्वेष करना ), तीक्ष्ण, १ अर्थ हैं ॥ ४रिष्टम्' (न) के कल्याण, अशुभका अभाव, २ अर्थ हैं ॥ ५ 'अरिष्टम्' (पु) के शुभ, अशुभ, २ अर्थ हैं ॥ ६ ' कूटम् ' ( न पु ) के माया, निश्चल ( आकाशादि ), हरिना आदि फँसानेका का यन्त्र - विशेष ( जाल आदि ), कपट, असत्य, गल्ला ( अन्न आदि की ढेरी ), लोहका हथौरा, पहाड़की चोटी, हलके आगेवाला भाग, ९ अर्थ हैं ॥ 'त्रुटि' (स्त्री) के चोटी इलायची, समय-भेद, न्यूनता ( कमी ) संशय, ४ अर्थ हैं ॥ १७ ८ 'कोटि' (खो ) के धनुषके दोनों छोर, प्रकर्ष, कोण करोड़ ( संख्याविशेष ), ४ अर्थ हैं ॥ ९ 'जटा' (स्त्री) के पेड़ आदिको जड़, जटा ( मुनि आदिके सटे हुए बाल ), जटामासी, ३ अर्थ हैं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy