________________
नानार्थवर्गः३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
१ न्युष्टिः फले समृद्धौ च २१ष्टिानेऽक्षिण दर्शने ॥ ३८ ॥ ३ इािगेच्छयोः ४ 'सृष्टं निश्चिते बहुनि त्रिषु । ५ कष्टे तु कृच्छ्रगहने ६ दक्षामन्दागदेषु च ।। ३९ ॥
पटुद्वौँ वाच्यलिझी च-.
"पोटा दासी द्विलिङ्गा च ८ घृष्टी घर्षणसूकरी (३८) ९ घटा गोष्ठयां हस्तिपको १० कृपीटमुदरे जले' (३९)
इति टान्ताः शब्दाः।
अथ ठान्ताः शब्दाः।
-११ नीलकण्ठः शिवेऽपि च । १'व्युष्टिः' (स्त्री) के फल (प्रयोजन ), समृद्धि, २ अर्थ हैं । २ 'दृष्टिः' (स्त्री) के ज्ञान, आँख, देखना, ३ अर्थ हैं । ३ 'इष्टिः' (स्त्री) के यज्ञ, इच्छा, २ अर्थ हैं ॥
४ 'सृष्टम्' ( + सृष्टिः स्त्री। त्रि), के निश्चित बहुत (काफी ), छोड़ा हुआ, बनाया हुआ, ४ अर्थ हैं ॥ ___ ५ कष्टम् (त्रि) के दुःख, गहन (मुश्किल से करने योग्य काम आदि), २ अर्थ हैं ।
६ 'पटुः' (त्रि ) के चतुर, निरालसी, रोग, ३ अर्थ हैं ] ॥ ७ ['पोटा' (स्त्री) के दासी, स्त्री पुरुष के चिह्नोंसे युक्त स्त्रो, २ अर्थ है ] ॥ ८ ['घृष्टिः' (पु) के घिसना, सूअर, २ अर्थ हैं ] । ९ ['घटा' (स्त्री) के सभा, हाथियोंकी कतार, २ अर्थ हैं ] ॥ १० [ 'कृपोटम्' (न) के पेट, पानी, २ अर्थ हैं ] ॥
इति टान्ताः शब्दाः।
अथ ठान्ताः शब्दाः . ११ 'नीलकण्ठः ' (पु) के शिवजी, मोर, २ अर्थ हैं।
१. 'सृष्टिनिश्चिते बहुले त्रिषु' इति पाठान्तरम् ॥
२. मोटा....."जले इत्ययं क्षेपकांशः क्षी. स्वा. व्याख्यायां मूलमात्रमुपलभ्यत इत्य. तोऽयं प्रकृतोपयोगितया क्षेपकत्वेनात्र स्थापितः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org