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नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
-१ अपाङ्गस्तिलकेऽपि च ॥ २१ ।। २ सर्गः स्वभावनिर्मोनिश्चयायायसृष्टिषु । ३ योगः सन्नहनोपायभ्यानसंगतियुक्तिषु ।। २२ ।। ४ भोगः सुखे ख्यादिभृतावहेश्व फणकाययोः । ५ चातके हरिणे पुंलि सारङ्गः शबले त्रिषु ॥ २३ ॥ ६ कपौ च प्लवगः ७ शापे त्वभिषतः पराभवे । ८ यानाधङ्गे युगः पुंसि युगं युग्मे कृतादिषु ॥ २४॥ ९ स्वर्गषपशुवाग्वजदिनघृणिभूजले
लक्षष्टया स्त्रियां पुंसि गौ१०लिङ्ग चिह्नशेफसोः ॥२५॥ , 'अपाङ्गः' (पु) के तिलक, नेत्रका प्रान्त (किनारा), २ अर्थ हैं।
२ 'सर्गः' (पु) के स्वभाव, त्याग, निश्चय, काव्य के प्रकरण (जैसेवाल्मीकि, नैषध, माध, किरात, रघुवंश आदिका प्रकरण ), सृष्टि, ५ अर्थ है।
३ 'योगः' (पु) कवच, साम-दाम आदि उपाय, ध्यान (चित्तको एकाग्र करना), संगति, युक्ति, विश्वासघातक, ६ अर्थ हैं।
४ 'भोगः' (पु) के सुख, स्त्री आदिकी मजदूरी या वेतन, साँपका फण, साँपका शरीर, ४ अर्थ हैं।
५ 'सार' (पु) के चातक पक्षी, हरिण, हाथी, ३ अर्थ और 'सारङ्गः' (त्रि) का चितकाबर, १ अर्थ है ॥
६ 'प्लवगः' (पु) के बन्दर, मेडक, सूर्यका सारथि, ३ अर्थ हैं॥ ७ 'अभिषतः' (पु) के शाप, पराभव, शपथ, ३ अर्थ हैं।
८ 'युगः' (पु) के रथ-गाड़ी आदिका जुआठ (जुवा), अर्थ और 'युगम्' (म) के युग (सत्ययुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग), जोड़ा, २ अर्थ हैं।
९ 'गौः' ( = गो, लषयानुसार पु स्त्री) के स्वर्ग, चाण, पशु (गाय, बैल, साद आदि ), बाक ( बोली , वज्र, दिशा ( पूर्व, पश्चिम आदि), आँख, सूर्य, पृथ्वी, पानी १० अर्थ हैं । ( लक्ष्यानुसार पुंल्लिङ्ग स्त्रीलिङ्ग जैसे-स्वर्ग, वाण, पशु (वैट) आदिके पुंलिङ्ग रहनेपर 'गो' शब्द पुखिनः वाक्, पशु (गाय, बाछी), दिशा आदिके स्त्रीलिङ्ग रहनेसे 'गो' शब्द स्त्रीलिज होना')॥
१. लिङ्गम् (न) के चिह्न, लिग (पुरुषके पेशाबका रास्ता), १ अर्थी।
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