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४३० अमरकोषः।
[तृतीयकाण्डे.
-१ इन्द्रियेऽपि खम् ॥ १८ ॥ २ घृणियाले मपि शिखे
इति खान्ताः शब्दाः।
श्रय गान्ताः शब्दाः।
-३ शैलवृक्षौ नगावगौ। ४ आशुगौ वायुविशिखौ ५ शरार्कविहगाः खगाः ॥ १९ ॥ ६ पतङ्गो पक्षिसूर्यो व ७ पूगः क्रमुकवृन्दयोः। ८ पशवाऽपि मृगा ९ वेग: प्रवाहजवयोरपि ।। २० ।। १० परागः कौसुमे रेणौ स्नानायादौ रजस्यपि । ११ गजेऽपि नागमातनो
, 'खम्' (न), के इन्द्रिय, शून्य, आकाश, ३ अर्थ हैं ।
२ 'शिखा' (स्त्री) के किरण, ज्वाला, मोरकी शिखा, शिखामान (चोटी), ४ अर्थ हैं।
इति खान्ताः शब्दाः।
अथ गान्ता: शब्दाः । ३ 'नगः, अगः' ( पु) के पहार, पेस, १ अर्थ हैं ।। ४ 'आशुगः' (पु) के वायु, वाण, सूर्य, ३ अर्थ हैं। ५ 'खगः' (पु) के वाण, सूर्य, पक्षी, ३ अर्थ हैं । ६ 'पत' (पु) के पक्षी, सूर्य, २ अर्थ हैं। ७ 'पूग' (पु) के सुपारी ( कसैली), समूह, २ अर्थ हैं । ८ 'मृगः' (पु) के पशु, हरिण, पाँचों नक्षत्र, याचना, ४ अर्थ हैं ।। ९ 'वेगः' (पु) के प्रवाह, तेजी, २ अर्थ हैं ।
.. 'परागः' (पु) के फूलका पराग, स्नान करने योग्य सुगन्धित चूर्ण (पार ), धूलि, विख्याति, पर्वत, ५ अर्थ हैं।
'नाग' (पु) के हाथी, सॉप, नागकेसर, ६ अर्थ और 'माता ' (पु) के हाथी, चण्डाल, १ अर्थ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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