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अमरकोषः।
[ तृतीयकाण्डे१ शृङ्गं प्राधान्यसान्योश्च २ वराङ्गं मूर्द्धगुह्ययोः।। ३ भगं श्रीकाममाहात्म्यवीर्ययतार्ककीर्तिषु ॥ २६ ॥
इति गान्ताः शब्दाः।
अथ धान्ताः शब्दाः। ४ परिघः परिघातेऽस्त्रेऽ५प्योघो वृन्देऽम्भसा रये। ६ मूल्ये पूजाविधाव?७ऽहोदुःखव्यसनेम्वघम् ।। २७ ।। ८ 'त्रिविष्टेऽल्पे लघु:
इति घान्ताः शब्दाः।
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' 'कम्' (न) के प्राधान्य, शिखा (पहारकी चोटी), सींग, ३ अर्थ हैं।
२ 'वरागम्' (न) के मस्तक, गुयेन्द्रिय या योनि (बीके पेशाबका रास्ता), १ अर्थ हैं।
३ 'भगम्' (न) के शोभा, इच्छा, माहास्य (प्रशंसा या बड़ाई), सामर्थ्य, यस्न, सूर्य, यश, धर्म, ८ अर्थ और 'भगः' (प)का सूर्य, अर्थ है।
इति गान्ता: शब्दाः
अथ घान्ताः शब्दाः ४ 'परिघः' (+पलिघः । पु) के परिध' नामका हथियार (बोहा मढ़ी हुई लाठी), योग-भेद,.. अर्थ हैं ।
५ 'मोघा (पु) के समूह, जलका प्रवाह, शीघ्रतासे नाचना, परम्परा, ४ अर्थ हैं॥
'अर्घः' (पु) के मूल्य (कीमत ), पूजा-विधि (अतिथि भादिके मानेपर या देव-पूजामें किया हुजा 'अर्घ नामका सरकार-विशेष, २अर्थ है।
• 'अघम् (न) के पाप, दुःख, व्यसन (जुमा खेलने भादिकी भावत), . ३ अर्थ हैं। 'लघु' (त्रि) के इष्ट, कम, १ अर्थ हैं।
इति घान्ताः शब्दाः ।
१. 'त्रिविष्टेऽपि इति पाठान्तरम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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