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अमरकोषः।
[तृतीयकाण्डे
खलानां खलिनी स्वल्याप्यरथ मानुप्यकं नृणाम् । ग्रामता जनता धूम्या पाश्या गल्पा पृथक्पृथक् ॥ ४२ ॥ अपि. साहस्रकारोषवार्मणाथर्वणादिकम् ।
इति संकीर्णवर्गः ॥ २॥
३. अथ नानार्थवर्गः। ३ नानार्थाः केऽपि कान्तादिवर्गेष्वेवान कीर्तिता ।
भूरि प्रयोगा ये येषु पर्यायेष्यपि तेषु ते ॥१॥ , खलिनी, खल्या ( २ स्त्री ), 'स्खलिहानके समूह के नाम हैं।
२ मानुष्यकम् , ग्रामता, जनता, धूम्या, पाश्या, गल्या (५ स्त्री), 'साह. सम् , कारीषम् , वार्मणम् , पाथवर्णम् (शे० ५ न ), आदि (आदिसे 'चार्मणम् , आङ्गारम , ..... ), 'मनुष्य, ग्राम, जन, धूम, पाश (जाल ), बड़ा काश, हजार, कडरा ( उपला या गोहरा), कवचधारा, अथर्वण, मादि (मादिसे चमड़ा, अङ्गार,... ), इनके समूह' का क्रमशः १-१ नाम है।
इति संकीर्णवर्गः ॥३॥
३. अथ नानार्थवर्गः। ३ वश्यमाण (भागे कहे जानेवाले ) इस कान्तादि (बादिसे-खान्त गान्त, बान्त,.......... ) वर्ग में अनेक अर्थवाले भी कई शब्द कहे गये हैं जो पहले पायों में नहीं कहे गये हैं और पण्डित-जनोंने काव्य-पुराण आदि प्रमों में 'पृथुक, गरुमत् , रजस्' आदि जिन शब्दों का बहुधा प्रयोग किया है वे (शुक, गहस्मत, रजस् मादि) शब्द पहले स्वर्गवर्ग आदिके पर्यायों में तथा यहाँ भी कहे गये हैं। (जैसे-पृथुक शब्द 'पोतः पाकोऽर्भको डिम्मा पृथुका शावकः विद्यः' (२५) यहाँ 'बालक' अर्थमें और 'पृथुकः स्थाश्चिपिटक:' (A ) वहाँ 'पिका' अर्थ में कहे जानेपर भी इस नानार्थवर्गमें 'पृथुक.
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