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नानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
अथ कान्ताः शब्दाः। १ आकाशे त्रिदिवे नाको २ लोकस्तु भुवने जने।
चिपिटाभको' ( ३३॥३) उक्त दोनों (बालक और चिउड़ा) अर्थों में फिर कहा गया; 'गरुत्मत्' शब्द 'गरुत्मान्' गरुढस्ताचर्यो -' ( २९) यहाँ 'गरुड़ अर्थमें और '-नीहोद्भवा गरुत्मन्तो पिस्सन्तो नभसङ्गमाः' (२।५। ३४ ) यहाँ 'पक्षी' अर्थ में कहे जानेपर भी इस नानार्थवर्गमें 'पक्षिताच्यौं गरुत्मन्तौ ( ३।११५८) उक्त दोलों ( पक्षी और गरुड़) अर्थों में फिर कहा गया; 'तमस्' शब्द 'तमस्तु' राहुः वर्भानु:--' (१।३।२६) यहां 'राहु' अर्थमें. 'गुणाः सत्वं रजस्तमः' (११५।२९) यहाँ 'सत्त्वादि गुण' अर्थमें और 'अन्धकारोऽस्त्रियां धान्तं तमित्रं तिमिरं तमः' (१ ) यहाँ 'अन्धकार' अर्थमें कहे जाने पर भी इस नानार्थवर्गमें 'राहो ध्वान्ते गुणे तमः' ( ३॥॥२३॥) उक्त तीनों (राहु, सस्वादि गुण और अन्धकार ) अर्थों में पुनः कहा गया। इसी तरह विद्वान् जन अन्यान्य उदाहरणों का भी तर्क कर लें)। पद्यपि 'जम्बुक' शब्दके क्रमशः 'स्यार, वरुण' और 'बालिश' शब्द 'मूर्ख, बालक' ये २-२ अर्थ हैं तथापि इन्हें पण्डित-जनोंने क्रमशः 'स्यार और मूर्ख इन्हीं 1-1 अर्थों में उक्त (जम्बुक और बालिश) शब्दोंका प्रयोग किया है, अन्य दो (वरुण और बालक) अर्थों में नहीं, मत एक ग्रन्थकारने भो वैसा ही किया है (अर्थात् जैसे-'जम्बुक' शब्दको 'सृगालवशककोष्टुफेरुफेरव. जम्बुकाः (१५।५) यहाँपर 'स्यार' अर्थ में कहकर इस नानार्थवर्गमें जम्बुको क्रोष्टुवरुणौ' ( ३) 'स्यार और वरुण' दोनों अर्थों में कहा है। इसी तरह 'बालिश' शब्दको भी 'अज्ञे मूड़यथाजातमूर्खवैधेयबालिशाः' ( ३।९।४८) यहाँ 'मूर्ख' अर्थमें कहकर इस नानाथवर्गमें 'शिशावशे च बालिश' (३॥
१८) 'मूर्ख और बालक' दोनों अर्थों में कहा है। इसी तरह अन्यान्य उदाहरणों का तर्क करना चाहिये' )।
अथ कान्ताः शब्दाः । , 'नाका' (पु) के स्वर्ग, आकाश, २ अर्थ हैं। १ 'लोक' (पु) भुवन (संसार), जन, एअर्थ हैं।
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