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अमरकोषः।
[तृतीयकाण्डे
१ स संस्तावः क्रतुषु या स्तुतिभूमिर्दिजन्मनाम् ।। ३४॥
निधाय तक्ष्यते यत्र काष्ठे काष्ठं स उद्धनः । ३ स्तम्बघ्नस्तु स्तम्बघनः स्तम्बो येन निहन्यते ॥ ३५॥ ४ आविधो विध्यते येन तत्र ५ विष्वक्समे निघः । ६ उत्कारश्च निकारश्च द्वौ धान्योत्क्षेपणार्थको ॥ ३६ ।। ७ निगारोगारविक्षावोद्ग्राहास्तु गरणादिषु । ८ आरत्यवरति विरतय उपरामे९ऽथास्त्रियां तु निष्ठेवः॥ ३७॥
निष्ठयतिनिठेवनं निष्ठीवनमित्यभिन्नानि ।
. संस्तावः (पु), 'यज्ञमें ब्राह्मणोंकी स्तुति करनेके लिये नियत स्थान-विशेष' का नाम है।
२ उदनः (पु), 'ठेहा' अर्थात् 'जिस लकड़ीपर रखकर दूसरी लकड़ी छीलते हैं उस नीचेवाली लकड़ी' का नाम हैं ।
३ स्तम्बम्नः, स्तम्बधनः (पु), 'घास काटने के हथियार खुरपा आदि, या तीनीके धानको झटका देकर झाड़नेके लिये बाँस या छड़ीमें बाँधे हुए दौरी आदि बर्तन' के २ नाम हैं ।
४ आविध: (पु), 'वर्मा' का नाम है ॥
५ निघः (पु), 'सब तरफ से एक समान जमे या लगाये हुए पेड़ मादि' का नाम है।
कारः, निकारः (२ पु), 'धान आदि अन्नको ओसाने या फटकने' के २ नाम हैं ।
७ निगार, उद्गार, विक्षावः, उग्राहः (४ पु), निगलने' (घोंटने ), वमन ( उल्टी, कय ) करने, छींकने और डकारने' का क्रमशः 1-1 नाम है।
८ भारतिः, भवरतिः, विरतिः ( ३ स्त्री), उपरामः (पु), 'रुकने के
. ९ निष्ठेवः (पुन ), निष्ठयतिः (स्त्री), निष्ठेवनम्, निष्ठीवनम् (न), 'थूकने के नाम हैं।
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