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४१४ अमरकोषः।
[तृतीयकाडे१ प्रत्याहार उपादानं २ विहारस्तु परिक्रमः ॥ १६॥ ३ अभिहारोऽभिग्रहणं ४ निर्हारोऽभ्यवर्षणम् । ५ अनुहारोऽनुकारः स्या ६ दर्थस्यापगमे व्ययः ।। १७ ।। ७ प्रवाहस्तु प्रवृत्तिः स्यात् ८ प्रवदो गमनं बहिः । ९ वियामो वियो यायो यमः संयामसंयमौ ॥ १८ ॥ १० हिंसाकर्माऽभिधास्याजागी जागरा द्वयोः।
प्रत्याहा (पु), उपादानम् (न ), 'इन्द्रियोको अपने (इन्द्रियोंक) विषयोंसे हटाकर वशीभूत करने के २ जाम हैं ।
२ विहारः, परिक्रमः (२ पु), 'पैदल टहलने' के नाम हैं ।
३ अभिहार: ( + अभ्याहारः । पु), अभिग्रहणम् (न), 'चुराने के २ नाम हैं। ___४ निहारः (पु), अभ्यवकर्षणम् (न) पर आदिमें चुभे (गड़े) हुए काँटे आदिको निकालने २ नाम हैं ॥
५ अनुहारः, अनुकारः (२ पु), 'अनुकरणम् ( नकल) करने के ।
६ व्ययः (पु), 'खर्च का , नाम है॥
• प्रवाहः (पु), प्रवृत्तिः (बी), 'पानी आदि तरल पदार्थों के निरन्तर बहने' के २ नाम हैं ।
८ प्रवहः (पु) 'जनादि के बाहर निकलने (बहने) के . नाम हैं ।
९ विधामः, वियमः, यामः, यमः, संयामः, संयमः (६ पु), 'संयम' अर्थात् 'योगके संयमनामक भङ्ग-विशेष' के ६ नाम हैं। (पी० स्वा० के मत से 'अनेक तरहके यम करने, उपरति (स्थाग) मात्र और संयम करने के क्रमशः २-२ नाम ')॥
१० हिंसाकर्म ( = हिंसाकर्मन् न । भा० दी.), अभिचारः (१), "हिंसा आदि करने के २ नाम हैं।
जागर्या ( +जानिया, जागतिः। सी), जागरा (बी पु), 'जागने
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