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संकीर्णवर्ग २] मणिप्रभाव्याख्या सहितः ।
४१३.
-१ अभियोगस्त्वभिग्रहः ॥ १३ ॥
स्प्रष्टोपतप्तरि ॥ १४ ॥
२ मुष्टिबन्धस्तु संप्राहो ३ डिम्बे डमरविप्लपौ । I ४ बन्धनं' प्रसितिश्चारः ५ स्पर्शः ६ निकारो विप्रकारः स्या ७ दाकारस्त्विङ्ग इङ्गितम् । ८ परिणामो विकारो द्वे समे विकृतिविक्रिये ।। १५ ।। अपहारस्त्वपचयः १० समाहारः समुच्चयः ।
६
१ अभियोगः, अभिग्रहः (२ पु) 'युद्ध आदि में ललकारने 'के १ नाम हैं ॥ २ मुष्टिबन्धः, संग्राहः ( २ पु ) 'मुट्ठी बाँधने या प्रतिमल्ल आदिको पकड़ने' के २ नाम हैं ॥
३ डिम्बः, डमरः, हथियारों की लड़ाई' के हैं, उस 'लट्ठ' अर्थ में भी किया है ) ॥
४ बन्धनम् (न), प्रसितिः ( + प्रसृतिः । स्त्री ), चारः ( + स्वारः । पु) 'बन्धन' के ३ नाम हैं ॥
विप्लवः (३ पु ), 'प्रलय टूटना (डाका ), या नाम हैं । ( जिसे बालक रस्सी लपेटकर नचाते 'डिम्ब' शब्द का प्रयोग श्रीहर्षने नैषधचरितमें
५ स्पर्शः ( + स्पशः ), स्पा ( = स्पष्टृ ), उपतप्ता (= उपतप्तृ । ३ पु ), 'संतप्त या उपताप रोगसे पीड़ित' के ३ नाम है ॥
६ निकारः विकारः (पु), अपकार, बुराई' के २ नाम हैं ॥
७ आकारः, इङ्गः ( २ पु ), इङ्गितम् (न), 'मतलब के अनुसार चेष्टा' के ३ नाम हैं ॥
८ परिणामः विकारः ( २ पु ), विकृतिः, विक्रिया ( २ स्त्री ), 'विकार, स्वभाव के बदलने' नाम हैं ! ( 'किसी किसी के मत से २-२ शब्द
एकार्थक हैं' > ॥
९ अपहार, अपचयः ( २ पु ), 'छीन लेने या घटने' के २ नाम हैं ॥ १० साहाः, समुच्छ्रयः (२ पु), 'बटोरने इकट्ठा या ढेरी करने' के २ नाम हैं ॥
१. 'प्रसृतिः स्वारः स्पशः' इति पाठान्तरम् ॥
२. तद्यथा - 'बालेन नक्तं समयेन युक्तं रौप्यं लसड्डिम्बमिवेन्दुबिम्बम् ।'
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इति नै० च० २२-५३
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