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भमरकोषः। [तृतीयकाण्डे१ क्षिपायां क्षेपणं २ गीणिगिरी ३ 'गुरणमुघमे ॥ ११॥ ४ उन्नाय उन्नये ५ श्रायः श्रयणे ६ 'जयने जयः। ७ निगादो निगदे ८ मादो मद ९ उद्वेग उभ्रमे ॥ १२॥ १० विमर्दनं परिमलोऽ ११ भ्युपपत्तिरनुग्रहः। १२ 'निग्रहस्तद्विरुद्धः स्यात्
१ क्षिपा (स्त्री), क्षेण्णम् (न), 'प्रेरणा करने, चलाने या फेंकने के २ नाम हैं।
२ गीनि:, गिरिः ( २ स्त्री), 'निगलने' अर्थात् 'घोंटने के २ नाम है।
३ गुरणम् ( + गूरणम् , गोरणम् । न ), उद्यमः (पु), 'उद्यम, उद्योग' के २ नाम हैं।
४ उचायः, उन्नयः (२ पु), 'उन्नति या ऊहा' के २ नाम हैं । ५ श्रायः (पु), श्रयणम् (न), 'सेवा' के २ नाम हैं ।
६ जयनम (न), जयः (पु), 'जीत, विजय के २ नाम हैं। (बी. स्वा० सम्मत पाठभेदसे--- 'जपनम् (न), जपः (g), 'जप' के २ नाम हैं)।
७ निगाद, गदः ( २ पु), 'स्पष्ट कहने के २ नाम हैं । ८ मादः, मदः (६ पु), 'मद, हर्ष के २ नाम हैं । ९ उद्वेगः, उनमः ( २ पु), 'घबराहट' के १ नाम हैं ।
१० विमर्दनम् (न), परिमलः (पु), 'शरीरमें कुङ्कुम, चन्दन या उषटन आदिको लगाने के २ नाम हैं ।।
"अभ्युपपत्तिः (स्त्री), अनुग्रहः (पु) 'अनुग्रह' अर्थात् भलाई करने या बुराई से बचाने के २ नाम हैं ॥
१२ निग्रहः (पु), (+ निरोधः, भा० दी.), 'निग्रह' अर्थात् 'बुराई करने और भलाईसे बचाने (रोकने का नाम है । ('पाठभेदसे-"विग्रहः, विरोधः (२ पु), 'विरोध' (वैर) के २ नाम हैं")॥
२. 'गूरणमुघमे' इति पाठान्तरम् । २. 'जपने जपः' इति क्षी० स्वा० सम्मतं पाठान्तरम् ॥
३. अयं पाठो महे० सम्मतः । 'निप्रहस्तु विरोधः' इति क्षी० स्वा० पुस्तकपाठः, तत्र'-निरोध' इति पाठयम् । 'विग्रहो विरोधो वा' इति क्षी० स्वा० । 'निग्रहस्तु निरोष। इति मा० दी० पाठः समीचीनो माति ।।
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