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अमरकोषः।
[तृतीयकाण्ड
-१ बहिते वृढम् (१५) २ भाजितं निचितं ३ पूर्णे पूरितं ४ निभृते भृतम् (१६) ५ प्रतिश्रितं प्रविष्ट स्या ६ दमार्ग निरर्थक (१७) ७ न्यशितं. म्यादधःक्षिप्तं ८ दिसमूच मुश्चितम् (१८) ९ स्पष्टेऽचितं १० चतुर्थे तु तुमो तुय भास्थिते (१९)
आकारे श्लिष्टसंपृक्त: १२ स्नाचते छुतिभूषितो (२०) १३ प्रचर्चितं प्रतीष्टं १४ द्वेष्यामृष्य हिगताः समाः (२१) १५ श्यानं शीने
, [ बहितम् , वृढम् (२ त्रि), 'बढ़े हुए' के २ नाम हैं ] ॥ २ [ भाचितम् , निचितम् (२ त्रि), 'घटे हुए २ २ नाम हैं ] ॥ ३ [ पूर्णम् , पूरितम् (२ त्रि), 'पूरे हुए' के २ नाम हैं ] ॥ ४ [ निभृतम् , भृतम् (२ त्रि), 'वश में रहनेवाले' के नाम हैं ] ॥
५[५ प्रतिश्रितम् , प्रविष्टम् (२ त्रि), 'प्रवेश किये (घुसे) हुए के २ नाम हैं ॥]
६ [अन्तर्गहु, निरर्थकम् (२ त्रि), 'निरर्थक. बेमतलब' नाम हैं] ॥ ७ [ न्यश्चितम् , अधःक्षिप्तम् (१ त्रि), 'नीचे फेंके हुए' के २ नाम हैं] ॥ ८ [ उदखितम् (त्रि), 'उपर फेंके हुए' का । नाम है] ॥ २ [ स्पष्टम् , अषितम् (१ त्रि), 'स्पष्ट' के २ नाम हैं ] ॥ १. [ चतुर्थम् , तुरीयम् , तुर्यम् ( ३ त्रि), 'चौथे' के ३ नाम हैं ] ॥ "[श्लिष्टसंपृका (त्रि), 'स्थायी आकारवाले' का । नाम है ] ॥
१२ [ खचितः, छुरितः, भूषितः (३ त्रि), 'रत्न-जवाहिरात आदि से जड़े हुए भूषण आदि के ३ नाम हैं ] ॥
१३ [प्रचर्चितम् , प्रतीष्टम् (२ त्रि), 'चन्दनादि छिड़के हुए स्थान मादि' के २ नाम है ] ॥
"[ द्वेष्यः, अमृष्या, अक्षिगतः (३ त्रि), 'आँख में गड़े हुए, वैरी' के तीन नाम है ]
१५ [श्यानम्, सीनम् , (२ त्रि), 'जमे हुए घी आदि के २ नाम हैं।
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