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अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे
-१ मारा चर्मप्रभेदिका ॥ ३४॥ २ सौ स्थूणायाप्रतिमा ३ शिल्पं कर्म कलादिकम् । ४ प्रतिमानं प्रतिबिम्ब प्रतिमा प्रतियातना प्रतिच्छाया ॥ ३५ ॥
प्रतिकृतिरर्चा पुंसि प्रतिनिधि ५ रुपमोपमानं स्यात् । वाच्यलिङ्गाः समस्तुल्यः सरक्षः सदृशः सहक ।। ३६ ।। साधारणः समानश्च ७ स्युरुत्तरपदे त्वमी! निभसंकाशनीकाशप्रतीकाशोपमादयः ॥३७ ।। ८ कर्मण्या तु विधाभृत्याभृतयो भर्म वेतनम् ।
आरा, धर्मप्रमेदिका (२ वी), 'चमड़ा काटनेवाले हथियार के १नाम हैं।
२ सूर्मी ( + सूमिः ), स्थूणा, अयःप्रतिमा ( ३ सी), 'लोहेकी मूर्ति' के नाम हैं।
३ शिरुपम ( न ), 'कला ( कारीगरी) आदि कौशल के काम' का नाम है।
४ प्रतिमानम् , प्रतिबिम्बम् (न), प्रतिमा, प्रतियातना, प्रतिच्छाया, प्रतिकृतिः, अर्चा (५ सी), प्रतिनिधिः (पु), 'प्रतिमा, फोटो, तस्वीर' के नाम है। ___ ५ उपमा (बी), उपमानम (न), 'उपमा, मिसाल' के ३ नाम है। ('किसी के मतसे 'प्रति मानम् ,' ...' ७ नाम एकार्थक हैं')॥
समा, तुल्या, REEः; सहशः, सहक ( = सश), साधारणा, समान: (७ त्रि), 'सरश, समान, बराबर' के ७ नाम हैं ।
निभा, संकाशः, नीकाशः, प्रतीकाशः, उपमा, आदि (+भूता, रूपा, कपः, देशः, देशीयः । ५ त्रि), ये, ५ शब्द किसी शब्दके उत्तरमे रहनेपर उसके सरश अर्थको कहते हैं। ('जैसे-'राजनिभा, राजसंकाशः,....." अर्थात् 'राजाके समान' । उत्तरपद शब्द समासमें रूढ है. अत एव 'चन्द्रेण निभः' यहांपर यद्यपि 'चन्द्र' शब्द के उत्तरमें निम' शब्द है, तथापि साश अर्थका बोध नहीं करता')॥
कर्मण्या ( + भर्मण्या), विधा, भृत्या, भृतिः ( ४ स्त्री,) भर्म (= भ..
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