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अमरकोषः।
[द्वितीयकाण्डे - १ पुमानुपनिधिासः २ प्रतिदानं तदर्पणम् । ३ कये प्रसारितं क्रय्यं ४ क्रयं वेतन्यमात्रके ।। ८१ ॥ ५ विक्रेयं पणितव्यं च पण्यं ६ कय्यादयस्त्रिषु । ७ क्लीवे लत्याएनं सत्यङ्कारः सत्याकृतिः स्त्रियाम् ॥ ८२ ॥ ८ विपणो विक्रयः ९ संख्याः सङ्खयेये ह्यादश त्रिषु ।
उपनिधिः, न्याः ( + निक्षेपः । २ पु), 'थाती, धरोहर रखने के नाम हैं। __ २ प्रतिदानम् (न), 'धरोहर (थाती), को वापस करने का , नाम है ॥
३ क्रश्यम् (त्रि), 'सौदा' अर्थात् 'ग्राहकों को खरीदने के लिये दूकानपर फैलाई हुई वस्तु' का १ नाम है ॥
४ क्रेयम् (त्रि), 'खरीदने योग्य वस्तु' का १ नाम है ॥
५ विक्रेयम् , पणितव्यम् , पण्यम् (३ त्रि), 'बेचने योग्य वस्तु' के ३ नाम हैं।
६ 'क्रय्य आदि शब्द त्रिलिग हैं ॥
७ सत्यापनम् ( + सत्यापना स्त्री । न ), सत्यकारः (पु), सत्याकृतिः (स्त्री), 'साई, बयाना, एडशन्स, पेशगी' के ३ नाम हैं।
८ विपणः, विक्रयः (२ पु), 'बेचने के नाम हैं।
९ 'एकः, द्वौ, त्रयः,"नवदश' भा० दी० के मतसे 'एक, दो, तीन,.... नवदश ( उन्नीस) संख्या ' का, और एकः द्वौ, त्रयः,... अष्टादश' महे, मुकु०, क्षी. स्वा. आदिक मतसे 'पक दो, तीन,... ''अट्ठारहतक संख्या का वाचक क्रमशः १-१ शब्द है। ये (एक, दि.......) शब्द गिने जानेवाले वस्तुके वाचक रहने-पर त्रिलिज होते हैं। ('जैसे-'एको ब्राह्मगः, एका ब्राह्मणी, एक वस्त्रम् ; द्वौ ब्राह्मण्यो, द्वे ब्राह्मण्यो, द्वे वस्त्रे....", इन वाक्यों में ब्राह्मण, ब्राह्मणी और वस्त्र' शब्द क्रमशः 'शिर, स्त्रीलिङ्ग
और नपुंसक लिङ्ग' हैं। अत एव 'एक और द्वि' शब्दका भी क्रमशः 'पुंलिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग' में प्रयोग हुमा है । मूल में 'हि' शब्द के अवधारणार्थक होने से सामानाधिकरण्य (एको ब्राह्मणः, दो ब्राह्मणो, यो ब्राह्मणाः; एका ब्राह्मगी, वे ब्राह्मण्यो, तिम्रो ब्राह्मण्या,
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