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अमरकोषः।
[ द्वितीयकाण्ड
चतुरब्दा चतुर्हायण्येवं ज्यदा विहायणी ॥ ६८॥ घशा बया२ऽवतोका तु सावदर्भा३श सन्धिनी।
आकान्ता वृषभेणाऽथ बेहदोषघातिनी ! ६९।। ५ काल्यो सर्या प्रजने ६ प्रष्टोही बालगर्मिणी। ७ स्यादवण्डी तु सुकरा ८ बहुसूतिः परेष्टुका :॥ ७० ।
९ चिरप्रसूता बकायणी'दो वर्ष, एक वर्ष, चार वर्ष और तीन वर्ष की उम्रशाली गो' के क्रमशः २-१ नाम हैं ॥ (उपलक्षणसे मानवादि के लिए श्री इन शब्दों का प्रयोग होता है)।
१ वशा, बन्ध्या ( + वन्ध्या । १ स्त्री), 'बाँझ (बच्चा नहीं पैदा करने. वाली) गौ आदि' के २ नाम हैं।
२ अक्तोका ( + वतोका , स्रबद्र्भा (२ स्त्री ), "अकस्मात् जिसका गर्भ गिर गया हो उस गौ आदि' के २ नाम हैं।
३ सधिनी (स्त्री), बाही (साँइके साथ संगम की) हुई गाय' का नाम है।
४ वेहद् (= वेहत्), गोपधातिनी (भा दो० । + वृषोपगा। २ स्त्री), 'साँड़के साथ संयोगकर गर्भको नष्ट की हुई गाय' के २ नाम हैं ।
५ काल्या (अन्य मतसे ), उपसर्या (२ स्त्री), 'उठी हुई (साँड़ के साथ मैथुन करने की इच्छा करनेवाली) 'गाय' के २ नाम हैं ॥
प्रष्ठाही ( + पष्ठीही ), बालगर्भिणी (भा० दी । २ स्त्री), 'आँकर (पहले पहल गर्भ धारण की हुई ), 'गाय' के २ नाम हैं ।
७ सचण्डी, सुकरा (+ सुशधरी । २ स्त्री), सूधी गाय के २ नाम हैं ।
८ बहुसूतिः, परेष्टुका ( २ स्त्री), 'बहुत बच्चा पैदा की हुई गाय के २नाम हैं।
९ चिरप्रसूता, वष्कयिणी ( + वष्कयणी, कयणी । २ स्त्री) 'बकेना (बहुत दिनों की व्याई हुई) गाय' के नाम हैं।
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