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________________ २३६ अमरकोषः । १ लक्षं लक्ष्यं शरव्यं च २ शराभ्यास उपासनम् । ३ पृषत्कबाणविशिखा अजिह्मगखगाशुगाः ॥ ८६ ॥ 'कलम्बमार्गणशराः पत्रो रोप इषुर्द्वयोः । ४ प्रक्ष्वेडनास्तु नाराचाः ५ पक्षो वाजस्त्रिषूसरे ॥ ८७ ॥ ६ निरस्तः प्रहिते बाणे [ द्वितीयकाण्डे - विशाखम्, मण्डलम् (३ न) का संग्रह है ') 'धनुषधारियोंके बैठने के पांच आसन विशेष (तरीके), हैं । ( 'इनमें - बांये जङ्केको आगे बढ़ाकर उठाने और दाहिनी को पीछे खींचकर समेटने को प्रत्यालीढ १, दहने जङ्के को आगे बढ़ाकर उठाने और बांये जङ्घेको पीछे खींचकर समेटने का आलीढ २, दोनों पर्रोको बराबर रखने को समपाद ३, दोनों पैरोंको फैलाने को वैशाख ४ और दोनों पैरोंको गोलाई के समान रखनेको मण्डल ५, कहते हैं' ) ॥ १ लक्षम, लक्ष्यम्, शरव्यम् (३ न ), 'निशाने' के ३ नाम हैं ॥ २ शराभ्यासः (पु), उपासनम् ( न ), 'बाण चलानेका अभ्यास करने' के २ नाम हैं ॥ ३ पृषत्कः, बाणः, विशिखः, अजिह्मगः, खगः, भशुगः, कलम्बः, मार्गणः, चारः ( + सरः), पत्री ( = पत्त्रिन्), रोपः ( ११ पु ), इषुः ( पु स्त्री ), 'बाण' के १२ नाम हैं ॥ ४ प्रचवेदन: ( + प्रवेदन: ), नाराच: ( १ पु ), 'लोहेके बाण' के २ नाम हैं ॥ ५ पचः, वाजः, ( २ पु ), 'बाण में लगे हुए पहु ( कङ्कपत्र ), के २ नाम हैं ॥ ६ निरस्तः (त्रि ), 'धनुष से छोड़े हुए बाण' का १ नाम है ॥ १. 'कलम्बमार्गण सराः' इति पाठान्तरम् ॥ २. मरते ( रभसे ) न तु धनुर्धराणां षट् स्थितिप्रकारा उक्तास्तथा हि'वैष्णवं समपादं च वैशाखं मण्डलं तथा । Jain Education International प्रस्थाकोढमथालीढं स्थानान्येतानि पण्नृणाम् ' ॥ १ ॥ इति ॥ ३. पृथक पटकमस्येति विग्रहः । ते च षड् धनुर्वेद उक्तास्तथा हि'पुङ्खः शरस्तथा शक्ष्यं पक्ष स्नायु बतूनि च' । इति ॥ For Private & Personal Use Only ―― www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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