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अमरकोषः
[द्वितीयकाण्डे
-१ पात्रं नुवाधिकम् ॥ २४ ॥ २ भुवोपभृज्जुहू ३ र्ना तु सुवो भेदाः 'सुचः स्त्रियः। ४ उपाकृतः पशुरसौ योऽभिमन्य तौ हतः ॥२५॥ ५ परम्पराक 'शमनं प्रोक्षणं च वधार्थकम् । ६ वाच्यलिकाः प्रमीतोपसंपन्नप्रोक्षिता हते ॥ २६ ॥ ७ सान्नाय्यं हवि ८ रग्नौ तु हुतं त्रिषु वषट्कृतम् । ९ दीक्षान्तोऽवभृथो यज्ञे १० तत्कर्माहं तु यक्षियम् ।। २७ ॥
, पात्रम् (न), 'जुवा आदि ( चमस, मोक्षणी, प्रणीता, सूर्प, व्यजन, उलूखल, मुसल, ग्रह, ......) बर्तन' का । नाम है ॥
२ ध्रुवा, उपभृत् , जुहूः (३ सी), ये ३ 'सुवाके भेद' हैं ।
३ + नुवः (पु), जुक (= त्रुच । +ः । स्त्री), 'वा' अर्थात् 'अग्निमें घी सकनेवाले काष्ठनिर्मित यज्ञ-पात्र विशेष के २ नाम हैं। . ४ सपाकृतः (पु), 'वेदमन्त्रसे अभिमन्त्रित कर यज्ञमें मारे हुए पशु' का । नाम है। __ ५ परम्पराकम् , शमनम ( + शसनम्, ससनम् ), प्रोक्षणम् (३ न), 'यसमें पशुको मारने के ३ नाम हैं ।
६ प्रमीतः, उपसंपन्नः, प्रोषितः (३ त्रि), 'यक्षमें मारे हुए पशु' के ३ नाम हैं॥
• साचारपम् , हविः (= हविष , भा० दी० । २ न ), 'हवन करने योग्य हविष्य आदि पदार्थ' के २ नाम हैं । .. हुतम् ( भा० दी०), वषट्कृतम् (२ त्रि), 'अग्निमें हवन किये हुए हविष्य आदि पदार्थ के १ नाम है ।
९ अवभृथः (), 'यक्षके अन्त में किये जानेवाले यक्ष-समाप्तिसूचक मान-विशेष' का । नाम हैं।
• यज्ञियम् (त्रि.), 'यक्षके योग्य पदार्थ का । नाम है । ('जैसे'माक्षण, हविष्यादि मन, स्थान....')॥
१. 'नुव इति पाठान्तरम् ॥ १. 'शसनस्पति एका पाठविली. स्वा० । 'ससनम् इत्यन्य प्रति मा. दी।
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