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२३० अमरकोषः ।
[द्वितीयकाण्डे -
१ दृश्याचं वस्त्रवेश्मनि । २ प्रतिसीरा 'जवनिका स्यात्तिरस्करिणी च सा ॥ १२० ।। ३ परिकाङ्गसंस्कारः स्यान्माटिसर्जना मृजा। ५ उद्वर्तनोत्सादने द्वे समे ६ आप्लाव आप्लवः ।। १२१ ।।
सानं ७ चर्चा तु चार्चिक्यं स्थासकोटऽथ प्रबोधनम् ।
अनुबोधः ९ पत्त्रलेखा पत्राङ्गुलिरिमे समे ॥ १२२ !: १दूष्यम् ( + दृश्यम् । न ), मादि ('आदि' शब्द से 'पटकुटी' (स्त्री), पटवासः ( = पटवासस् ), पटगृहम्, पटकुड्यम् (३ न), इत्यादिका संग्रह है), 'कपडे के घर, डेरा, रावटी, तम्बु आदि' का नाम है ।
२ प्रतिसीरा, जवनिका ( + यमनिका ), तिरस्करिणी ( + तिरस्कारिणी, तिरस्करणी । ३ स्त्री), 'कनात, पर्दा के ३ नाम हैं।
३ परिकर्म ( = परिवर्मन् । + प्रतिकर्म = प्रतिकर्मन् । न ), अङ्गसंस्कारः (पु), 'कुङ्कम आदिसे शरीरके संस्कार करने के २ नाम हैं ।
४ मार्टिः, मार्जना, मृजा ( ३ स्त्री) 'झाड़ पोछकर शरीरको साफ करने के ३ नाम हैं।
५ उद्वर्तनम् , उत्सादनम् ( + उच्छादनम् । २ न), उबटन, वेशन, साबुन आदिसे शरीरको मलने' के २ नाम हैं ।
६ भाप्लावा, आप्लवः (२ पु), स्नानम् (न), 'स्नान करने के ३ नाम हैं।
७ चर्चा (सी), चार्चिक्यम् (न), स्थासकः (पु), शरीरमें चन्दन मादि लगाने के ३ नाम हैं ॥
८ प्रबोधनम् (न), अनुबोधः (पु), 'निकले हुए गन्धको फिरसे साने' के २ नाम है । ('जैसे-'कस्तूरी के गन्ध के निकल जानेपर मदिरा छोरनेसे उसका गन्ध फिर आ जाता है)।
९ पस्त्रलेखा, पस्त्राङ्गुलिः (२ स्त्री), 'कस्तूरी, केसर, मेंहदी या पन्दन आदिसे गाल या स्तनादिपर पत्ते, फूल आदिकी चित्रकारी करने के २ नाम हैं।
१. 'यमनिका' इति पाठान्तरम् । २. प्रतिकाङ्गसंस्कारः" इति पाठान्तरम् ।। १. पचाइनिरम लियो र पाठान्तरम् ॥
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