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साङ्केतिक चिह्न और शब्दके विवरण
मूल के सङ्केत ' ' इस चिह्न के बीचवाले अंश क्षेपक हैं, उनके भन्तमें ( ) इस कोछके मध्य में क्रमानुसार पतिसंख्या लिखी गई है। श्लोकोंके पहले या मध्य भागमें दिये गये अङ्क हिन्दी टीकाके प्रतीक हैं।
टीका और टिप्पणीके संकेत 3-सन्धि ('सु' विभक्ति प्रातिपदिकसे भिन्न रूपवाले ) शब्दों के प्रातिपदिकावस्थाका शुद्ध रूप । __+-पाठभेद या मतभेदसे उपलब्ध पर्याय; और ग्रन्थान्तरमें उपलब्ध शिक समानाकार (प्रायःमिलते जुलते हुए) या प्रसिद्धतम पर्यायवाचक शब्द । [ ]-क्षेपक श्लोकों की हिन्दी टीका ।
उन-इन ग्रन्थों के काण्ड, वर्ग, श्लोक, परिच्छेद, अध्यायादि जानने के लिये अङ्क दिये गये हैं। पुपा पुल-पुंलिंग
भा. दो०-भानुजिदीक्षित खो या सी-सिलिंग
मु०-मुकुट नया म.-मपुंसकलिंग
मा.-मागुरि त्रिपा वि-विलिंग
प्रा०-प्राज्य मि-नित्य
रा. कृ. दी.-रामकृष्णदीक्षित
बु. म.-बुधमनोहर ९.०-एकवचन
म. वि.-अमरविवेक दिव०-द्विवचन
ज्या० सु.--व्याख्यासुधा (रामाश्रमी) ब.प. या बहुव०-बहुवचन पा० सू-पाणिनीयसूत्र शे०-शेष
लि. सू०-लिंगसूत्र म.-मत या मतभेद
उ. सू०-उणादिसूत्र उदा०-दाहरण
वा०-वार्तिक स्वा०-स्वामी
यो० सू०-योगसूत्र जी. स्वा.-क्षीरस्वामी
अभि. चिन्ता. या भ० चि० म०महे.-महेश्वर
अभिधानचिन्तामणि
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