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[ २१ ] प्रार्थना स्वीकृत कर इस संस्करणका अपना पाण्डिस्य पूर्ण 'प्राक्कथन' लिखनेकी अनुकम्पा की है।
इसके अतिरिक्त प्रायः पैंसठ वर्षों से संस्कृत साहित्य के विविध विषयक ग्रन्धोंका प्रकाशनकर भारतीय आर्ष संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन के अन्यतम सेवाव्रती, चौखम्बा संस्कृत पुस्तकालय तथा चौखम्बा विद्याभवन, काशी के अध्यक्ष श्रीमान् माननीय सेठ 'जय कृष्ण दामजी गुप्त' महोदयको भी शुभाशी:पूर्वक भूरिशः धन्यवाद देता हूँ; जिन्होंने इस प्रन्थका पुनर्मुद्रण करके सकल संस्कृतानुरागियों के लिए इसे सुलभतम मूल्य में प्रदान करते हुए त्रिवर्गको अर्जित करने का सफल प्रयास किया है।
इस संस्करण के मुद्रण में मेरे सुदूर प्रदेशमें रहने के कारण प्रूफ संशोधन आदि कार्य करनेवाले मित्रवर्गको भी अनेकशः धन्यवाद प्रदान करता हूँ।
यद्यपि मैंने इस संस्करणमें दृष्टचर त्रुटियों के निराकरणका पूर्णतया प्रयास किया है, एवं कतिपय स्थलों में अनेक विषयोंको विशदकर इस संस्करणको पूर्वापेक्षया अधिक उपयुक्त बनानेका यथाशक्य प्रयत्न किया है; तथापि इसका सम्पादन, अक्षरसंयोजन, संशोधन एवं मुद्रणादि सब कार्य मानवकृत होनेसे और जगरना ईश्वरके अतिरिक्त प्राणिमात्रको सर्वथा दोषविनिर्मुक्त होना असम्भव होनेसे इस संस्करण में भी सम्भावित त्रुटियों के लिए गुणकपक्षपाती विवृन्दसे बद्धाञ्जलि हो समायाचना करता हूँ कि वे जिस प्रकार इसे अपनाकर अन्यान्य अन्योंको लिखने के लिए मुझे उत्साहित करनेकी असीम अनुकम्पा की है, उसी प्रकार भविष्य में भी अनुकम्पा करते रहें।
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रामनवमी सं० २०१४
विद्वज्जनवशंवदः
हरगोविन्दशास्त्री
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