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वनौषधिवर्गः ४] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
१२७ १ अस्त्री प्रकाण्डः स्कन्धः 'स्यान्मूलाच्छाखावधिस्तरोः ॥ १० ॥ २ समे शाखालते ३ स्कन्धशाखाशाले ४ शिफाजटे । ५ शास्त्राशिफावरोहः स्यान्मूलाञ्चायं गता लता ॥ ११ ॥ ६ शिरोऽग्रं शिखरं वा ना ७ मूलं बुध्नोऽध्रिनामकः । ८ सारो मजा नरि ९ त्वक्त्री वल्कं वल्कलमस्त्रियाम् ॥ १२ ॥
१ प्रकाण्डः (पु न ), स्कन्धः (पु), 'कन्धा, पेड़ आदिकी शाखाको जड़' के २ नाम हैं।
२ शाखा ( + शिखा ), लता (२ वी ), 'डाल' के २ नाम हैं ।
३ स्कन्धशाखा, शाला ( २ स्त्री), 'सबसे पहले फूटनेवाली डाल' के २ नाम हैं।
४ शिफा, जटा ( २ स्त्री), 'सोर' अर्थात् 'जमीन के भीतर फैली हुई पेड़की जड़' के २ नाम हैं । ___ ५ अवरोहः (पु), 'पेड़की जड़ या पेड़ आदिपर चढ़ी हुई गुडूची आदि लता' का नाम है। ('यह महे. और मुकुटका मत है । भा० दी. मतसे 'अवरोहः' (पु), 'डालकी जड़' का १ नाम है तथा 'लता' (स्त्री), 'वृक्षके ऊपर चढ़नेवाली लता' का १ नाम है')॥
६ शिरः (= शिरस), अग्रम् (२ नाम ही. स्वा. महे. मतसे); शिखरम (३ न ), 'फुनगी' अर्थात् 'पेड़ भादिके सबसे ऊपर के हिस्से' के ३ नाम हैं।
७ मूलम् (न), बुधनः ( + नः ), अघ्रिनामकः ('पैर के वाचक सब शब्द । २ पु), 'पेड़ आदिकी जड़' के ३ नाम हैं ।
८ सारः, मजा ( = मजन् । + मजा = मजा, स्त्री। +२ पु.), 'लकड़ीके बीचका हीर' अर्थात् 'मारिल लकड़ी के २ नाम हैं।
९ स्वक् ( = स्वच्, स्त्री), वल्कम्, वक्षकलम ( २ पु न ), 'पेड़ आदिके छिलके के ३ नाम है ॥
१. 'स्यान्मूलाच्छाखावधेस्तरोः' इति पाठान्तरम् ॥
२. 'सारो मज्जा समौ' इति पाठान्तरम् ।।। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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