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अमरकोषः ।
[ प्रथमकाण्डे
१ पृथुरोमा झषो मत्स्यो मीनो वैसारिणोऽण्डजः । 'विसारः शकली चाथ २ गडकः शकुलार्भकः ॥ १७ ॥ ३ सहस्रदंष्ट्रः पाठीन ४ उलूपी शिशुकः समौ । ५ नलमीनश्चिलिचिमः ६ प्रोष्ठी तु शफरी द्वयोः ।। १८ ।। ७ क्षुद्राण्डमत्स्य संघातः पोताधानदमथो भषाः ।
रोहितो मदुगुरः शालो राजीवः शकुलस्तिमिः ॥ १९ ॥
या कीड़ा आदि लपेटकर पानी में फेंककर मछलियां फैलाई जाती हैं, उसे 'बंसी' कहते हैं ) ॥
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१ पृथुरोमा ( पृथुरोमनू ), क्षषः, मत्स्यः, मीनः, वैसारिणः, अण्डजः, विसारः, शकली ( = शकलिन् । + शकुली, = शकुलिन्, सकली, = सकलिन् । ८ पु ), 'मछली' के ८ नाम हैं ।।
२ गडकः, शकुलार्भकः ( २ पु ), 'गडक मछली' के २ नाम हैं ॥ ३ सहस्रदंष्ट्रः, पाठीनः ( २ पु ), 'पहिना मछली' अर्थात् 'बहुत दांत वाली पहिनानामक एक प्रकारकी मछली या पोठिया मछली के २ नाम हैं ॥ ४ उलूपी ( = उलूपिन् ), शिशुकः ( २ पु ), 'स' के नाम हैं ॥ ५ नलमीन ( + नडमीनः, तलमीनः ), चिलिचिमः ( चिल चिमिः । २ पु), 'नरकटमें रहनेवाली एक प्रकारकी मछली- विशेष' के २ नाम हैं ॥ ६ प्रोष्ठी (स्त्री), शफरी ( स्त्री । + पुत्री ), 'सहरी या पोठिया मछली' के २ नाम हैं ॥
७ पोताधानम् (न ), 'अण्डेसे निकले हुए मछलियों के छोटे छोटे बच्चोंके समुदाय' का १ नाम है 1
८ अब मछलियों के 'भेद' को कहते हैं अर्थात् वक्ष्यमाण शब्द पर्याय नहीं हैं ॥
९ रोहितः, मद्गुरः शालः ( + सालः ), राजीवः, शकुलः, तिमिः, तिमिङ्गिलः (७ पु ), आदि ( 'आदि पदसे 'तिमिङ्गिलगिल:, नन्दीवर्त्तः (२ पु ), आदिका संग्रह है' ), 'रोहू, मोगरा, शाल, बरारी, शकुल, तिमि,
१. 'विसारः शकुली चाथ' इति मा० दी० सम्मतः पाठः, मूलोतश्च महे० क्षी० स्वा० सम्मतः पाठ इत्यवधेयम् ॥
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