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वारिवर्गः १० ]
मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
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१ क्लीबेऽर्धनावं नावोऽधेऽतीत नौकेऽतिनु त्रिषु । त्रिष्वागाधा४त्प्रसन्नोऽच्छः ५ कलुषोऽनच्छ आविलः ॥ १४ ॥ ६ निम्नं गभीरं गम्भीरमुत्तानं तद्विपर्यये । ८ अगाधमतलस्पर्श ९ केवतें दाशधीवरौ ।। १५ ।। १० आनायः पुंसि जालं स्या११णसूत्रं पवित्रकम् । १२ मत्स्याधानी कुवेणी स्या१३द्वडिशं मत्स्यवेधनम् ॥ १६ ॥
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१ श्रर्द्धनावम् (न), 'नावके आधे हिस्से' का १ नाम है ॥ २ अतिनु (त्रि ) 'नावकी अपेक्षा अधिक वेगसे चलनेवाले मनुष्य या पानीके बहाव आदि' का १ नाम है ॥
३ यहाँसे लेकर 'अगाधमतलस्पर्शे '' - ( १|१०/१५ ) के पहलेतक 'त्रिषु' शब्दका अधिकार होनेसे सब शब्द त्रिलिङ्ग हैं ॥
४ प्रसन्नः, अच्छः ( + स्वच्छः | २त्रि ), 'साफ, निर्मल पानी आदि' के २ नाम हैं ॥
५ कलुषः, अनच्छः, आविल: ( ३ त्रि ), 'गन्दे पानी आदि' के ३ नाम हैं ॥
६ निम्नम्, गभीरम्, गम्भीरम् (३ त्रि), 'गम्भीर गहरे' के ३ नाम हैं ॥ ७ उत्तानम् (त्रि ) 'थाह, या उथला छिछिल' का १ नाम है ॥ ८ अगाधम्, अतलस्पर्शम् (२ त्रि), 'अथाह, बहुत गहरे' के २ नाम हैं ॥ ९ कैवर्तः, दाशः ( + दासः), धीवरः (३ पु ), 'मल्लाह' के ३ नाम हैं ॥ १० आनायः ( पु ), जालम् (न ), 'जाल' के २ नाम हैं ॥
११ शणसूत्रम्, पवित्रकम् ( २ न ), 'सुतली के बने हुए जात' के २ नाम हैं ॥
१२ मरस्याधानी, कु.वेणी ( २ स्त्री ), 'मछलियोंको पकड़कर रखनेवाले बर्तन' के २ नाम हैं ॥
१३ बडिशम् ( + बलिशम् ), मरस्यवेधनम् ( २ न ), 'बंशी' अर्थात् 'लोहे के बने हुए मछली फँसाने के साधन-विशेष' के २ नाम हैं । ' ('जिसमें भाटा
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