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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
अगार-धर्म के क्रमिक विकास के लिए जिनका आलंबन असणं पाणगं चेव खाइमं साइमं तहा। लेकर भारहीनता का अनुभव करता है।
एसा आहारविही, चउव्विहा होइ नायव्यो। श्रावकस्तस्य सावधव्यापारभाराक्रान्तस्य आश्वासाः- आसुं खुहं समेई, असणं पाणाणुवग्गहे पाणं। तद्विमोचनेन विश्रामाः। (स्था ४.३६२ वृ प २२४) खे माई खाइमं ति य, साएइ गुणे तओ साई॥ आसन्दी
(आवनि १५८७, १५८८) अनाचार का एक प्रकार । मञ्चिका आदि पर बैठना, जो मुनि आहारक के लिए अनाचरणीय है।
१. औदारिक आदि किसी भी वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण आसंदी उपविसणं। (द ३.५ अचू पृ६१) करने वाला।
(प्रज्ञा १८.९४)
२. शरीर को पोषण देने वाले पदार्थों को ग्रहण करने वाला। आसुरी भावना संक्लिष्ट भावना का एक प्रकार । क्रोध की सतत प्रवृत्ति से
(द्र आहार, अनाहारक) भावित चित्त वाले व्यक्ति का व्यवहार और आचरण । आहारककाययोग अणुबद्धरोसपसरो तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवि।
आहारक शरीर के द्वारा की जाने वाली प्रवृत्ति । एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ॥
(तभा २.२६ वृ) (उ ३६.२६६)
आहारकमिश्रकाययोग आसेवन शिक्षा
(कग्र ४.२४) ज्ञान के अनुरूप क्रिया का उपदेश।
(द्र आहारकमिश्रशरीरकाययोग) आसेवनशिक्षा तु प्रत्युपेक्षणादिक्रियोपदेशः। (विभा ७ वृ)
आहारकमिश्र शरीर काययोग (द्र ग्रहणशिक्षा)
जब आहारक शरीर अपना कार्य सम्पन्न कर औदारिकआस्तिक्य
शरीर में प्रवेश करता है, उस समय औदारिक के साथ सम्यक्त्व का एक लक्षण। सत्यनिष्ठा-आत्मा, पुनर्जन्म, कर्म आहारकमिश्र काययोग होता है। आदि में विश्वास।
इहाहारकमिश्रशरीरकाययोगप्रयोग आहारकस्यौदारिकेण आस्तिक्यम्-सत्यनिष्ठा। (जैसिदी ५.९ वृ)
मिश्रतायां स चाहारत्यागेनौदारिकग्रहणाभिमुखस्य। जीवादयोऽर्था यथास्वं भावैः सन्तीति मतिरास्तिक्यम्।
(भग ८.६३ वृ) (तवा १.२.३०)
आहारक लब्धि आहार
विशिष्ट लब्धि, जिसके द्वारा श्रुतकेवली विशिष्ट प्रयोजन १. जीव द्वारा किसी भी वर्गणा के पुद्गलों का ग्रहण।। उत्पन्न होने पर आहारक शरीर का निर्माण करते हैं।
औदारिक आदि तीन शरीर और छ: पर्याप्तियों के योग्य कन्जंमि समुप्पण्णे सुयकेवलिणा विसिट्ठलद्धीय। पुद्गलों को ग्रहण करना।
जं एत्थ आहरिज्जइ भणंति आहारयं तं तु॥ त्रयाणां शरीराणां षण्णां पर्याप्तीनां योग्यपुद्गलग्रहणमाहारः।
(अनुहावृ पृ८७) (तवा २.३०) आहारकवर्गणा २. भूख-प्यास को शांत करने वाले, शरीर को पोषण देने
आहारक शरीर के प्रायोग्य पुद्गल-समूह। (विभा ६३१) वाले पदार्थों का ग्रहण, जिसके चार प्रकार हैं-अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य।
आहारकशरीर .."चउव्विहं वि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइम।
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