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'जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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अवगाहना
अवग्रहकल्पिक. सूत्रमत्र आचारद्वितीयश्रुतस्कन्धस्य शरीर अथवा उसका आधारभूत क्षेत्र जीव के शरीर की सप्तमम् अवग्रहप्रतिमानामकमध्ययनम्। (बृभा ६६९ वृ) ऊंचाई-लम्बाई आदि।
पढिते य कहिय अहिगय, परिहरति"कप्पितो सो उ... अवगाहन्ते-आसते यस्यां (जीवाः) साऽवगाहना-तनुस्त
(बृभा ४१६) दाधारभूतं वा क्षेत्रं.....।
(भग १.२१९ वृ)
अवग्रहण
अवग्रह की पहली अवस्था, जिसमें व्यञ्जनावग्रह के प्रथम अवगाहनागुण
समय में प्रविष्ट अथवा सन्निकृष्ट पुद्गलों का ज्ञान होता है। एक विशेष गुण, जिसके द्वारा आकाशास्तिकाय अवगाह का
वंजणोग्गहस्स पढमसमयपविट्ठपोग्गलाण गहणता हेतु बनता है।
ओगिण्हणता भण्णति। (नन्दी ४३ चू पृ ३५) 'अवगाहणागुणे त्ति'... अवकाशहेतुः... |
(भग २.१२७ वृ) अवग्रहसमितियोग अवगाहनानामनिधत्तायु
ओग्गहं अणुण्णविय गेण्हियव्वं । एवं ओग्गहसमितिजोगेण
भावितो भवति अंतरप्पा। आयुबंध का एक प्रकार । औदारिक आदि शरीरनाम कर्म के
(प्रश्न ८.१०) साथ होने वाला आयु का निषेचन।
(द्र अवग्रहानुज्ञापना) गतिनामनिहत्ताउए इति गति: नरकगत्यादिभेदाच्चतर्खा सैव
अवग्रहसीमाज्ञान नाम गतिनाम तेन सह निधत्तमायुः. गतिनामनिधत्तायुः""शरीरं
अचौर्य महाव्रत की दूसरी भावना। गृहस्वामी द्वारा अनुज्ञात औदारिकादिः तस्य नाम औदारिकादिशरीरनामकर्म अवगाह
अवग्रह (स्थान) की सीमा को जानना। नानाम।
(प्रजा ११८ वृ प २१८) ( १९०८
तत्र च अनुज्ञाते सीमापरिज्ञानम्। (सम २५.१.१२ वृ प ४३) अवगृहीत
अवग्रहानुज्ञापना पिण्डैषणा का एक प्रकार । खाने के लिए थाली में परोसा
अचौर्य महाव्रत की प्रथम भावना। अवग्रह (स्थान) के हुआ आहार लेना।
लिए गृहस्वामी की अनुज्ञा लेना। भोयणकाले निहिया सरावपमुहेसु होइ उग्गहिया।
तत्रावग्रहानुज्ञापना। (सम २५.१.११ वृ प ४३) (प्रसा ७४२)
(द्र अवग्रहसमितियोग) अवग्रह श्रुतनिश्रित मतिज्ञान का एक प्रकार । इन्द्रिय और अर्थ का अवधारिणी भाषा संयोग होने पर दर्शन के पश्चात् सामान्य अर्थ का ग्रहण १. वह भाषा, जिसके द्वारा अर्थ का अवधारण किया जाता होना।
है, जो अवबोध की बीजभूत होती है, जिसके माध्यम से अर्थानां रूपादीनां प्रथमं दर्शनानन्तरमेवाऽवग्रहणमवग्रहं
मनन और चिन्तन किया जाता है। (विभा १७९ वृ पृ९०)
'मन्ये' अवबुध्ये इति। एवमवधार्यते-अवगम्यतेऽनयेत्यवइन्द्रियार्थयोगे दर्शनानन्तरं सामान्यग्रहणमवग्रहः।
धारणी, अवबोधबीजभूतेयर्थः। (भ २.११५ वृ) (जैसिदी २.११)
मण्णामीति ओहारिणी भासा, चिंतेमीति ओहारिणी भासा। अवग्रहकल्पिक
(प्रज्ञा ११.१) वह मनि, जिसने आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कंध (आचार
अवधिज्ञान चूला) के 'अवग्रह प्रतिमा' नामक सातवें अध्ययन को पढ़ा
ज्ञान का एक प्रकार। इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना है, उसके अर्थ को सुना है, अभ्यास किया है, उस पर श्रद्धा
आत्मा से होने वाला मूर्त पदार्थों का ज्ञान। ज्ञेय वस्तु में की है और उसके अनुरूप अवग्रह (स्थान) का परिभोग
अवधान-एकाग्रता से होने वाला प्रत्यक्ष (अतीन्द्रिय) ज्ञान। करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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ब्रुवते।