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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
मिश्रात् क्षायिकं गच्छतः तदन्त्यसमये तत्प्रकृतिवेदनात् वेदकम्।
(जैसिदी ५.४)
लिए नियुक्त हो। 'वृषभाः' गच्छस्य शुभाऽशुभकार्यचिन्तानियुक्ताः।
(बृभा २०८५ वृ) २. गीतार्थ, जिसने विकार पर विजय प्राप्त कर ली। गीतार्था अविकारिणो वृषभा उच्यन्ते। (बृभा ५१८७ वृ) वृषीमान् वह मुनि, जो जितेन्द्रिय है और साधुजनोचित गुणों से युक्त
वशे येषामिन्द्रियाणि ते भवंति वुसीम, वसंति वा साधुगुणेहिं वुसीमंतः।
(उ ५.१८ चू पृ १३७) वृष्णिदशा कालिक श्रुत का एक प्रकार । उपांग का पांचवां वर्ग, जिसमें वृष्णिवंश के बारह राजकुमारों की चारित्राराधना तथा सर्वार्थसिद्धि में उत्पत्ति और सिद्धि का निरूपण है। अंधगवण्हिणो जे कुले ते अंधगसद्दलोवातो वण्हिणो भणिया, तेसिं चरियं गती सिज्झणा य जत्थ भणिता ता वण्हिदसातो।
(नन्दी ७८ चू पृ६०) "उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणंदवालस अज्झयणा पण्णत्ता"।
(वृष्णि १.३) वेद १. जीव सुख-दुःख का वेदन करता है इसलिए वह वेद है। जम्हा वेदेति य सुह-दुक्खं तम्हा वेदे त्ति। (भग २.१५) २. विषयाभिलाषा। वेदमोहनीय कर्म के उदय से होने वाली मैथुन की इच्छा, जैसे-स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद। नामकर्मचारित्रमोहनोकषायोदयाद वेदत्रयसिद्धिः।
(तवा २.५३) आत्मप्रवृत्तेमैथुनसंमोहोत्पादो वेदः। (धव पु ७ पृ७) ३. लिङ्ग-स्त्री और पुरुष के बीच भेदरेखा करने वाला अवयव। वेद्यते इति वेदो लिङ्गमित्यर्थःr"नामकर्मोदयाद योनिमेहनादि द्रव्यलिङ्गमिति।
(तवा २.५३)
वेदना स्वाभाविक रूप से अथवा उदीरणा के द्वारा उदयावलिका में प्रविष्ट कर्मपुद्गलों का अनुभव करना। वेदना-स्वभावेनोदीरणाकरणेन वोदयावलिकाप्रविष्टस्य कर्मणोऽनुभवनम्।
(स्था १.१५ वृ प १७) वेदना भय पीड़ा से उत्पन्न भय। वेदना-पीडा तदभयं वेदनाभयम्।
(स्था ७.२७ वृ प ३६९) वेदना समुद्घात समुद्घात का एक प्रकार। वेदनीय कर्म के उदय के कारण शरीर से आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना। वेदनादिपरिणतो हि जीवो बहुन् वेदनीयादिकर्मप्रदेशान् कालान्तरानुभवयोग्यानुदीरणाकरणेनाकृष्योदये प्रक्षिप्यानुभूय निर्जरयति, आत्मप्रदेशैः संश्लिष्टान् शातयति।
(सम ७.२ ७ प १२) वेदनीय कर्म वह कर्म, जो सुख-दु:ख के संवेदन का हेतु होता है। सातासातरूपमेव कर्म वेदनीयम्। (प्रज्ञावृ प ४५४) सुखदुःखरूपेणानुभवितव्यत्वाद् वेदनीयमिति।
(तभा ८.५ वृ) वेदान्त व्यवसाय का एक प्रकार । ऋग्वेद आदि वेद के आधार पर किया जाने वाला निर्णय। (द्र लोकान्त, व्यवसाय)
वेदिका प्रतिलेखना का एक दोष। प्रतिलेखना करते समय घुटनों के ऊपर, नीचे या पार्श्व में हाथ रखना अथवा घुटनों को भुजाओं के बीच रखना। वेदिका"उड्डवेतिया अहोवेतिया तिरियवेतिया दुहतोवेतिया एगतोवेतिया।
(उ २६.२६ शावृ प५४१)
वेदक सम्यक्त्व क्षायोपशमिक सम्यक्त्व से क्षायिक सम्यक्त्व की ओर जाते समय क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के अन्तिम समय में सम्यक्त्वमोहनीय का प्रदेशोदय के रूप में होने वाला वेदन।
वेलन्धरोपपात
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